सामाजिक

दुनिया के सामने नयी महामारी बनता जा रहा है मोबाइल फोन?

वैज्ञानिकों ने मोबाइल फोन का आविष्कार दुनियाभर की जनता व समाज को राहत व लाभ देने के लिए किया था, लेकिन अब यही मोबाइल फोन, स्मार्टफोन व सोशल मीडिया नेटवर्किंग साइटस आदि दुनियाभर के लिए नयी महामारी बनकर सामने आ रही हैं। आज भारत भर में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया के देशों में समाज के सभी वर्गों के लोग इनका उपयोग बेहिसाब ढंग से कर रहे हैं। हाल ही घटित विश्वभर की कुछ घटनाओं व हादसों की गहराई से जब जांच की गयी व अध्ययन किया गया तो पता चला है कि दुनियाभर के लोग एक नयी प्रकार की महामारी नोेमोफोबिया से ग्रसित हो रहे हैं। एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि मोबाइल फोन व सोशल साइटस के अधिक इस्तेमाल करने के कारण लोगों का सामाजिक व्यवहार भी अब बुरी तरह से प्रभावित होने लग गया है। वाकई मेें नोमोफोबिया अत्याधुनिक डिजिटलाइजेशन के युग में एक नयी महामारी का रूप ले रहा है।

भारत में भी नोमोफेबिया के कारण कई दुःखद हादसे घटित हो चुके हैं। नोमोफोबिया आखिर है क्या? नोमफोबिया यानी कीे नो मोबाइल फोन अर्थात इसका मतलब यह है कि यदि आपके पास मोबाइल फोन नहीं है तो आपको डर लगने लगता है कि अब क्या होगा? क्या मोबाइल फोन की बैटरी समाप्त होते ही आपको बैचेनी होने लगती है? क्या आप अपने फोन पर हर समय मैसेज और नोटिफिकेशन को चेक करते रहते हैं? क्या आपको अब ऐसा लगने लग गया है कि आप बिना फोन के एक भी मिनट नहीं रह सकते हैं? क्या आप इंटरनेट कवरेज से बाहर आते ही चिड़चिड़े हो जाते हैं? यदि आप इन सब चीजों का अनुभव करने लग गये हैं तो सतर्क हो जायें अैार थोड़ा सा समय निकालकर अपने स्वास्थ्य के बारे में विचार करेें कि कहीं आप भी नोमोफोबिया के शिकार तो नहीं हो रहे हैं।

अभी चीन से एक वीडियो आया है जो कि सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है और उसका अध्ययन भी किया जा रहा है। इस वीडियो में दिखाया गया है कि एक महिला सड़क पर मोबाइल फोन का उपयोग कर रही थी कि तभी अचानक से उसका दो साल का बालक अचानक से सड़क पार करने लग गया और वह एक कार के नीचे आ गया। जब ड्राइवर को हादसे का एहसास हुआ तो उसने अपनी कार रोकी और कार से उतरकर जब बालक को उठाया तो तब तक वह दम तोड़ चुका था। इस बीच उसकी मां का ध्यान अपने बालक पर गया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जब घटना की जांच की गयी तो पता चला कि मां अपने मोबाइल फोन पर इतनी व्यस्त थी कि उसे अपने बालक के बारे में पता ही नहीं था। यह तो हुई चीन के वीडियो की बात लेकिन पूरे भारत में तो इस प्रकार की घटनायें आम होती जा रही हैं।

कई अध्ययनों से यह भी पता चला है कि मोबाइल फोन, स्मार्टफोन व सोशल नेटवर्किग साइटस के अधिक से अधिक इस्तेमाल करने के कारण दुनियाभर के लोगों का सामाजिक वातावरण व व्यवहार भी बदल रहा है। अमेरिका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन से पता चला है कि वहां के 75 प्रतिशत छात्र अपना पर्स ले जाना तो भूल जाते हैं लेकिन अपना स्मार्टफोन ले जाना नहीं भूलते। इसी प्रकार शोध से यह भी पता चला है कि 75 प्रतिशत से अधिक लोग सोते समय अपना मोबाइल अपने पास ही रखकर सोते हैं और सोने के पहले व बाद में अपने मोबाइल फोन के मैसेज व नोटिफिकेशन को अवश्य चेक करते हैं। यह नोमोफोबिया नामक महामारी का एक भयानक रूप है।

आस्ट्रेलिया में भी नोमोफोबिया अर्थात मोबाइल फोन की लत का असर जानने के लिये 30 हजार लोगों पर एक शोध किया गया पता लगा कि 10 में से नौ लोगों को उस समय बैचेनी होने लग जाती है जब उनके स्मार्टफोन की बैटरी समाप्त होने लग जाती है। वैज्ञानिकों का मत है कि स्मार्टफोन के स्क्रीन का अधिक उपयोग करने से मनुष्य का फ्रंटलोब यानि की समाने का हिस्सा बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है जिसके कारण मनुष्य में फ्रंटलोब मोटर फंक्शन, भाषा, फैसले लेने की क्षमता व सामाजिक व्यवहार बुरी तरह से प्रभवित होता है। कई मामलों में तो मनुष्य की स्मरणशक्ति भी क्षीण हो रही हे व हो जाती है। अभी ब्रिटेन से एक समाचार आया है कि वहां पर एक महिला ने कलाई में दर्द की शिकायत लेकर डाक्टर के पास पहुची तो पता चला कि उस महिला ने क्रिसमस के दिन दिनभर व्हाट्सएप से मैसेज भेजने का काम किया था जिसे बाद में चिकित्सक ने व्हाट्सएपटाइटिसस का नाम दिया।

भारत में भी अब मोबाइल फोन का प्रयोग बहुत ही खतरनाक ढंग से बढ़ता जा रहा है जिसके कारण लोग अवसाद व अन्य नोमोफोबिया जैसी बीमारियों से त्रस्त होते जा रहे हैं। भारत में 24 वर्षीय एक युवक ने केवल इसलिए खुदकुशी कर ली क्योंकि उसके माता-पिता ने उसे स्मार्टफोन का कम उपयोग करने की सलाह दी थी। कानपुर में एक लड़की ने केवल इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वह कुछ नया करना चाहती थी और इसलिए उसने केवल फेसबुक पर अपने विचारों को शेयर करने के बाद खुदकुशी कर ली। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी दिल दहलाने वाली घटना घटी है। यहां के एक अस्पताल में जब एक लड़की स्नान करने के लिए बाथरूम के अंदर गयी तो उसे लगा कि मोबाइल फोन के माध्यम से उसकी नहाते हुए तस्वीर ली जा रही है तो वह शोर मचाकर बाहर आयी ओर केस दर्ज करने के बाद आरोपी को हिरासत में ले लिया गया। इसी प्रकार काकोरी में स्थित मदरसे में छात्र इनामुल रहमान मोबाइल पर बातें करते समय इतना व्यस्त हो गया कि उसे छत की रेलिग नहीं दिखी। बातें करने की धुन में व दो फुट ऊंची रेलिंग से टकराकर तीन मंजिल से नीचे गिर गया। उसे अस्पताल ले जाया गया और उसकी मौत हो गयी। वहीं झारखंड में एक स्कूल में मोबाइल फोन को ही प्रतिबंधित करना पड़ा क्योंकि वहां पर लड़के लड़कियों की फोटो ऐसे खींचते थे कि उनके स्कर्ट के नीचे का हिस्सा ही उनके मोबाइल में कैद होता था।

भारत में भी मोबाइल फोन का उपयोग एक भयंकर महामारी बनता जा रहा है। फोन के अंधाधुंध प्रयोग से अब निजता का भी उल्लंधन हो रहा है तथा सामाजिक व्यवहार भी तेजी से बदल रहा है। अब आप किसी पार्टी में चले जाइये व पारिवारिक वातावरण में जायें तो यह साफ दिखलायी पड़ जाता है कि सभी लोग अपने फोन पर ही व्यस्त हो गये हैं कोई अपनी सेल्फी लेने मे ंऔर कोई कैमरे में तस्वीरें कैद करने में ही व्यस्त रहने लग गया है। यही हाल बच्चों का भी हो गया है। अब बच्चों को शांत करना है तो माता पिता अपने बच्चेे को मोबाइल पकड़ा देते हैं जिसमें वह गेम खेलने लग जता है जिसके कारण बच्चों की याददाश्त की क्षमता व खेलने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि स्मार्टफोन के प्रयोग के कारण बच्चे संस्कारविहीन होते जा रहे हैं तथा लोगों ने झूठ बोलना खूब सीख लिया है।
फेसबुकिया प्यार की घटनायें काफी तेजी से बढ़ी हैं। मोबाइल फोन जनित अपराधों का शिकार युवतियां अधिक हो रही हैं। अभी विदेश स्थित एक रेस्टोरेंट में खाना ख रहे लोगों के बीच शोध किया गया तो पता चला कि अधिकांश माता-पिता व परिवार के सदस्य मोबाइल फोन पर इतन व्यस्त थे कि उन्हें अपने खाने की तरफ ध्यान ही नहीं था अपितु जब उनके बच्चांें ने उन्हें टोका तो उन्होंने बच्चों को ही डांट दिया। यही हाल अब अपने भारत का भी हो रहा है।

आज भारत में मोबाइल फोन के इस्तेमाल करने के लिए तरह-तरह की सावधानियां बरतने की अपील की जाती है। जिसमें कहा जाता है कि ड्राइविंग समय मोबाइल पर बात न करें, कान में एयरफोन लगाकर न तो सड़क पार करें और नहीं ड्राइविंग करें यदि ऐसा करते हैं तो ध्यान भंग होने का खतरा रहता है। यही रेलवे ट्रैक को पार करने रेलिंग छज्जा या फिर पुलिया की रेलिंग पर भी बैठकर बातें न करें अन्यथा मोबाइल फोन आपकी मौत कब लेकर आ जाये कहा नहीं जा सकता। लेकिन आज का युवा इन बातों पर ध्यान नहीं दे रहा है और अपनी प्राकृतिक ऊर्जा का बखूबी नाश कर रहा है।

मोबाइल फोन के उपयोग के कारण युवावर्ग व समाज भटकाव की ओर अधिक जा रहा है। उसे समाज व संस्कृति तथा परिवार ,दोस्तों के साथ कोई मतलब नहीं रह जाता है। मोबाइल फोन के अधिक उपयोग के कारण एकाकी जीवन की संभावना और बढ़ गयी है। साथ ही मोबाइल फोन के कारण लोगों में नैसर्गिक बौद्धिकता का भी अभाव हो गया है। मोबाइल फोन का यदि सावधानीपूर्वक व सकारात्मक नजरिये से उपयोग किया जाये तो वरदान है नहीं तो महामारी। इसलिए हमें मोबाइल फोन के बिना भी कुछ समय तक रहने की आदत डालनी चाहिये तथा सप्ताह एक दिन व महीने तथा वर्ष आदि में कम से कम एक दिन या कुछ घंटे बिना मोबाइल के बिताने का प्रयास करना चाहिये जिससे हम लोग नोमोफोबिया से सुरक्षित रह सकें।

मृत्युंजय दीक्षित