कविता : जिन्दगी – इक रंगमंच
जिन्दगी इक रंगमंच है
जिसके कईं रंग रूप हैं
कभी छाऊँ तो कभी धूप है !
कभी सुख की मिलती छाया है
कभी गम के बादलों का साया है !
कभी आशा होती पास है
कभी निराशा का एहसास है !
कभी सफलता कदम चूमती है
कभी असफलता पास घूमती है !
कभी फूलों की सेज पर चलते हैं कदम
कभी काँटों का दामन देता है गम !
कभी धन दौलत का होता है नाम
कभी गरीबी करती है जीना हराम !
कभी बसंत में खिल उठती हैं कलियाँ
कभी पतझड़ में बिखर जाती है पत्तियां !
कभी वक्त होता है बलवान
कभी बन सकता है हैवान !
कितना कुछ है इस जिन्दगी में
कुछ भी नहीं है स्थाई
बस परिवर्तन ही है इस जिन्दगी में !
— डॉ सोनिया
सच्ची रचना