मुस्कुराता चल
राहें कठिन हैं
किन्तु मुस्कुराता चल
अपने दृढ संकल्प से
काँटों को कुचल
तारों को देखना है
रातों को जाग
कदम बढ़ा आगे
संघर्ष से न भाग
पुरुषार्थ में छुपा है
मुसीबतों का हल
सिन्धु में तैरना है
तूफ़ान से न डर
तान के सीना
लहरों का सामना कर
कठिनाइयाँ तो पल में
हो जायेंगी सरल
संकीरंताएँ छोड़ के
हृदय को विशाल कर
अनंत कामनाओं को
रखले संभाल कर
उसर भूमि पर भी
लहराएगी फसल l
नदिया ने अपना रास्ता
स्वयं बनाया
चमन ने अपना
जीवन खूब सजाया
लक्ष्य पाओगे
जो इरादे हों अटल
अग्रगामी हो
पीछे न हटना
निकृष्ट मार्ग पर भी
कभी न रुकना
संघर्ष की राह पे
हो जाओगे सफल
प्रिय अर्जुन भाई जी, अति सुंदर व प्रेरक कविता के लिए आभार.
उत्साह वर्धन हेतु धन्यवाद
वाह
प्रेरक रचना
धन्यवाद