माता पिता के वचनों को श्रद्धापूर्वक सुनकर आचरण करने से हमारा निश्चय ही कल्याण होगाः स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती
ओ३म्
–वैदिक साधन आश्रम तपोवन के ग्रीष्मोत्सव का प्रथम दिवस-
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का ग्रीष्मोत्सव आज सोल्लास आरम्भ हुआ। देश के अनेक भागों से बड़ी संख्या में स्त्री व पुरुष इस आयोजन में पधारे हैं। बिहार से 40 व्यक्तियों की एक टोली भी आज प्रातः यहां पहुंची है जिनकी ऋषि दयानन्द और आर्य समाज के प्रति श्रद्धा देखते ही बनती है। जोधपुर के ऋषि स्मृति न्यास के एक न्यासी श्री गहलोत भी अपने कुछ साथियों के साथ यहां पधारे हुए हैं। आज प्रातः 5.00 बजे से 6.00 बजे तक योग साधना का प्रशिक्षण स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी के मार्गदर्शन में चला। इसके पश्चात प्रातः 6.30 बजे से सन्ध्या एवं आंशिक अथर्ववेद पारायण यज्ञ स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती के ही ब्रह्मत्व में हुआ जिसका कुशल संचालन आर्य विद्वान श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी ने किया। यज्ञ में बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुषों सहित आश्रम द्वारा संचालित तपोवन विद्या निकेतन के बालक व बालिकायें भी सम्मिलित हुए। यज्ञ की समाप्ति पर श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी ने यज्ञ के महत्व एवं इससे जुड़े जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष आदि की चर्चा की। अपने यज्ञोपदेश में स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती ने कहा कि अथर्ववेद के आज जिन मन्त्रों से आहुतियां दी गईं हैं उनमें यह शिक्षा है कि मनुष्य को प्रेमभाव से दूसरे मनुष्यों का दिल को जीतने वाला बनना चाहिये। हमें अपनी इन्द्रियों को भी वश में करना चाहिये। इन्द्रियों को वश में करने से सहनशीलता की वृत्ति में वृद्धि होती है। इससे मनुष्य की आयु लम्बी होती है। स्वामी दिव्यानन्द जी ने कहा कि वेदों में शिक्षा दी गई है कि हम देवों वा विद्वानों के प्रिय बनें। हमें वेद की शिक्षा के अनुसार सूर्य के समान तेजस्वी बनना है। सूर्य किसी को अन्धेरे में नहीं रखता। सूर्य के उदाहरण से हमें भी अपने जीवन से अज्ञान व अन्धकार को निकालना है। ऐसा करने से हमारा कल्याण होगा। विद्वान वक्ता स्वामी जी ने कहा कि भाई एवं बहिन का सम्बन्ध बहुत पवित्र सम्बन्ध है। वेद ने इस सम्बन्ध की मर्यादाओं को बताकर उनके पालन करने के बहुमूल्य संकेत किये हैं।
स्वामी दिव्यानन्द जी ने कहा कि यदि कोई मनुष्य धर्म का पालन नहीं करता तो उसे उसके कार्यों से हटा कर उन कार्यों पर धर्म का पालन करने वाले व्यक्तियों को नियुक्त चाहिये। उन्होंने कहा कि मन्त्रों में पितरों का सम्मान व उनकी आज्ञा पालन करने का विधान है। स्वामी जी ने कहा कि जो व्यक्ति अपने गृहस्थ के दायित्वों से निवृत हो जाते हैं एवं ज्ञान व अनुभव में भी वृद्ध हों वह सब पितर श्रेणी में होते हैं। विद्वान वक्ता ने कहा कि जो मनुष्य अपने माता-पिता का सम्मान व सेवा नहीं करता उसे समाज में भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। अतः सभी मनुष्यों को अपने माता-पिता सहित सभी वृद्धों व गुरुजनों का सम्मान व सेवा करनी चाहिये। अपने व्याख्यान को विराम देते हुए स्वामीजी ने कहा कि हमें अपने माता-पिता के उपदेशों व वचनों को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिये व उनका पालन करना चाहिये। इससे हमारा निश्चित रूप से कल्याण होगा। इसके बाद आज के सभी यजमानों को स्वामी जी ने वेदमन्त्रोच्चार-पूर्वक व शास्त्रीय कल्याणकारी वचनों को बोल व श्रद्धालु सत्संगियों से बुलवाकर आर्शीवाद दिया।
यज्ञ की समाप्ति के बाद आश्रम के वृहत प्रांगण में स्थाई रूप से निर्मित वेदी पर स्थापित ओ३म् ध्वज का आरोहण हुआ। यह ध्वजारोहण स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती, आचार्य आशीष दर्शनाचार्य और आश्रम के यशस्वी प्रधान श्री दर्शनकुमार अग्निहोत्री व दो माताओं सहित सभी अधिकारियों व विद्वानों ने मिलकर किया। श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी ने घ्वज के आरोहण विषयक विद्वतापूर्ण विचार प्रस्तुत किया। ध्वजारोहण के अवसर गाई जाने वाली वेदविहित राष्ट्रीय प्रार्थना ‘ओ३म् आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम’ हुई। इसके बाद हिन्दी में ‘ब्रह्मन् ! स्वराष्ट्र में हों द्विज ब्रह्–तेजधारी’ राष्ट्रीय प्रार्थना हुई और तत्पश्चात तपोवन विद्या निकेतन की 6 बालिकाओं ने ओ३म् ध्वज गीत ‘जयति ओ३म् ध्वज व्योम विहारी। विश्व–प्रेम–प्रतिमा अति प्यारी।। सत्य–सुधा बरसानेवाला, स्नेह–लता सरसानेवाला। सौम्य–सुमन विकसानेवाला। विश्व विमोहक भव–भय–हारी।’ गाया। ध्वजारोहण के अवसर पर अपने उद्बोधन में स्वामी दिव्यानन्द जी ने कहा कि हम सबको सभी वैदिक व सामाजिक नियमों का निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिये। ऊंच-नीच के कृत्रिम भेद-भाव भुलाकर परस्पर प्रेम व सहयोग का व्यवहार करें। शान्तिपाठ के साथ आज का प्रातःकालीन सत्र समाप्त हुआ जिसके बाद सामूहिक प्रातःराश की सुन्दर व्यवस्था थी। मीठा दलिया, मट्ठी, चाय व दूध का प्रबन्ध किया गया था जो सामूहिक रूप से सेवन करने पर विशेष सुख, आनन्द की अनुभूति व सन्तुष्टि करा रहा था। हमने स्वयं भी इसका सेवन किया और वहां दूर दूस से आये लोगों से परिचय प्राप्त किया।
–मनमोहन कुमार आर्य
मनमोहन भाई , लेख अच्छा लगा .
लेख पढ़कर प्रतिक्रिया देने और लेख को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। सादर नमस्ते।
प्रिय मनमोहन भाई जी, जितेंद्रिय व तेजस्वीस्वी बनने के आशीर्वाद के साथ पितर शब्द का नया अर्थ भी सीखने को मिला. सार्थक आलेख के लिए आभार.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। स्वामी जी ने बहुत सरल शब्दों में बहुत लाभदायक एवं महत्वपूर्ण बातें कहीं हैं। मैंने तो उनके सामने बैठकर सुनी, अतः बहुत अच्छा लगा। प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर।