कविता

हम ‪‎इंडियन‬ होना भूल रहे हैं

न गांधी आएंगे न नेहरू
न सुभाष आएंगे न भगत
साल बितते है स्मारक बनते हैं इनके नाम पर
जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर याद आते हैं वे
कभी ‘कौवे” कर देते हैं पेशाब उनके मूर्तियों पर
कभी नेतागण बाट देते हैं इन्हें अपने बिरादिरों में
कोई इन्हें हिन्दू कहते तो कोई मुस्लिम
पर
न हिन्दू एक होंगे न मुस्लिम एक होंगे
न सिख एक होंगे न ईसाई
बस धर्मनिरपेक्ष के नाम पर
यहाँ रेप होंगे …!!
धर्मनिरपेक्ष की बात याद आई , लेकिन ह्यूमैनिटी को भूल रहे हैं
दन्त कथा के दम पर , युद्धरत बन रहे है
मानों या न मानों पर ‪धर्मों‬ के नाम पर … हम इंडियन होना भूल रहे हैं

टी. मनु

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