सामाजिक

प्रेम कलश को स्नेह और सद्भावनाओं की बूंदों से भरते रहें

हम अपने प्रेम के कलश को सदैव स्नेह और सद्भावनाओं से भरा रखें। मानसिक एवं भावनात्मक पवित्रता के जल कण इस कलश में भरे। प्यार के पुष्प भरें। हम किसी व्यक्ति के अदृश्य कलश को भले ही न देख सकें किन्तु यह सही है कि प्रत्येक शिशु ऐसा ही अदृश्य कलश लेकर जन्म लेता है, पूरे जीवन भर अपना स्वतंत्र कलश रखता है और सदैव अपने कलश को भरा रखने का प्रयत्न करता है। अतः हम सोने के पूर्व स्वयं से यह प्रश्न पूछें कि क्या हमने किसी दूसरे व्यक्ति के कलश में भावनात्मक रूप से पवित्र कुछ शीतल जल की बूंदें भरी हैं? उसे अपने कलश में रखने के लिए सुगंधित पुष्प भेंट किया है? प्रतिदिन किसी के कलश को भरें और यह विश्वास रखें कि इसके साथ ही हमारा कलश स्वयमेव भरकर छल-छलाने लगेगा।

2. विचार करेें कि हम अपने कलश को पूरा भरकर कैसे रखें? सभी व्यक्तियों के समक्ष ऐसा ही प्रश्न उपस्थित रहता है। जब उनका कलश भरा होता है तब वे प्रसन्न रहते हैं और जब उनका कलश खाली हो जाता है तब वे दुःखी हो जाते हैं। हमें अपना कलश भरने और भरा रखने के लिए अन्य व्यक्तियों से अच्छे संबंध बनाने की आवश्यकता होती है। अन्य व्यक्तियों को अपना कलश भरने के लिए हमारे स्नेह की आवश्यकता होती है । पारस्परिक स्नेह और सद्भाव से दोनों के कलश भरे रहते हैं।

3. जैसे ही हम किसी व्यक्ति के प्रति मुस्कराते हैं, प्यार दिखाते हैं, अच्छे शब्द बोलते हैं, वैसे ही उसका और हमारा कलश भर जाता है। अच्छी वाणी बोलने और अच्छा कर्म करने वाले व्यक्ति का कलश अधिक शीघ्रता से भर जाता है। किसी को अच्छा अनुभव कराने वाले व्यक्ति का कलश शीघ्र भर जाता है। किसी का कलश रिक्त कर हम अपना कलश कभी भी नहीं भर सकते हैं। जब हम किसी का कलश भरते हैं तो हमारा कलश स्वयमेव तुरंत ही भर जाता है। छलकने लगता है। जब हम अपने कार्यो, सद्भावनाओं और सहयोग से दूसरों को अच्छा अनुभव कराते हैं, तब हम भी शीघ्र ही स्वयं अच्छा अनुभव करने लगते हैं। हम पूरे दिन अपने अच्छे शब्दों और कर्मों से एक दूसरे का कलश भरते रहते हैं। कटु और कर्कश शब्दों से रिक्त करते रहते हैं। हम सदैव सबका कलश भरने का प्रयास करें और आनन्द लें। सभी से प्यार करें। हम अपने अच्छे कार्यों और शब्दों से अपने साथियों के कलश भरे रखें। उनकी मुस्कराहट देखकर हमें उनके कलश भर जाने की जानकारी भी मिल जाती है। चेहरे की मुस्कान कलश भरने का संकेत प्रदान कर देती है। अपने से मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कलश भरने का हम सतत प्रयास करें। अपने चालक, सहायक, बालक के प्रति मुस्कराएं। धन्यवाद का पत्र लिखें। अपने दादा-दादी के साथ कुछ क्षण बिताएं।

4. कभी-कभी धार्मिक स्थल पर अपना खाली कलश लेकर जायें। धार्मिक स्थल की पवित्रता से आपका कलश भर जावेगा। धार्मिक स्थल से लौटकर किसी दूसरे के कलश में कुछ जलकण भरें। अपने से यह प्रश्न पूछें कि क्या आज मैंने किसी का कलश भरा है? दुर्भावनाओं के कारण कभी भी किसी का कलश रिक्त न करें। अपने, दूसरे का और मिलने वालों के कलश को सद्भावनाओं से आपूरित करते रहें।

सुरेश जैन, आई.ए.एस. (से.नि.)
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