ग़ज़ल
ये दिल तो दीवाना है इसे अब कौन समझाए
ये मुमकिन है तुम्हारी बेवजह याद आ जाए ।
कभी गुजरूं अगर तुम्हारी रहगुज़र से मैं
निगाहें फेर लेना तुम गर अहसास आ जाए।
खुद को रोक लेती पर मेरी सुनता नहीँ है दिल
तुम खुद को रोक लेना दिल में जज्बात आ जाए।
मेरे दिल की दुनिया में बसेरा कर चुके दिलबर
मेरा जीना नहीँ मुमकिन तुम्हें गर आँच आ जाए।
तुम आज़ाद बन्जारा जिधर चाहो उधर चल दो
सुन मैं भी हूँ तेरे पीछे काश तू साथ आ जाए ।
दुआएँ कर रहीं जानिब तेरे सदके मेरे हमदम
तेरे लब पर खुदाया खैर मेरा नाम आ जाए।
— जानिब
बहुत शानदार ग़ज़ल !
सुन्दर गजल !!!