पथपर निरन्तर अग्रसर नहीं मिला मुझको
राह पर राहगीर बनाकर भेज दिया मुझको।
चलता रहा दिन-रात कोई ना मिला मुझको।
यहसास हो रहा तुम हर-पग-पर हो वहाँ
जब वहाँ पहुँचा तो आगे बढ़ा दिया मुझको।
हर दिशाओं में ढुढता आगे बढता चला गया,
क्षितिज सा मिलता हुआ प्रतीत हुआ मुझको।
मिलते क्षितिज को छूने की मैं कोशिश किया,
हाथ से फिसलता गया वो नहीं मिला मुझको।
छू लूगा एक दिन हौसला बनाकर चल दिया,
मिलेगा एक दिन यही उम्मीद हुआ मुझको।
उम्मीद की दिया जलाए अग्रसर बढता रहा,
अंधेर नगरी में प्रकाश नहीं मिला मुझको।
चाँद को छूने की कोशिश मैं भी करता रहा।
पथपर निरन्तर अग्रसर नहीं मिला मुझको।
@रमेश कुमार सिंह /१९-०१-२०१६