लघुकथा

लघुकथा : मेरा घर तेरा घर

ममता का इकलौता बेटा बहु को लेकर उदयपुर नौकरी के सिलसिले में जाने लगा तो ममता बहुत उदास हो गई, रोने लगी, अकेली क्या करूंगी, मन कैसे लगेगा. तब बेटा बोला माँ उदास क्यों हो रही हो, आते जाते रहेंगे | संचार साधन बने हैं फोन पर बतिया लेंगे और फिर भौगोलिक दुरी मायने नहीं रखती मन की दूरी नहीं होनी चाहिए |

ममता ने भी मन को समझा लिया, दोनों बच्चो को लेकर चले गए, कुछ दिन फोन भी किया. फिर धीरे धीरे फोन कम आने लगे, पूछने पर काम की व्यस्तता का बहाना. घर में कोई फंकशन था तब वे एन मौके पर आये, सारी व्यवस्थायें ममता ने कैसे कीं ये तो उसका जी जानता है. आने के बाद भी सोता रहा बेटा कोई काम बतावो तो कह दे माँ ये आपका घर है, आपकी जिमेदारी है |

मेहमानो से भरा घर, कोई चाय, तो कोई नाश्ता बहु से मांगने लगे, तो वो ममता के पास आई और बोली मम्मी जी सब चाय नाश्ता मांग रहे हैं, आपकी रसोई में बणा दूँ? ममता अवाक् ……..

गीता पुरोहित

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,

3 thoughts on “लघुकथा : मेरा घर तेरा घर

  • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

    कब बच्चे पराए हो जाते हैं पता ही नहीं चलता. सुन्दर व मार्मिक लघुकथा लिखी हैं आप ने आदरणीय गीता पुरोहित जी . बधाई आप को .

  • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

    कब बच्चे पराए हो जाते हैं पता ही नहीं चलता. सुन्दर व मार्मिक लघुकथा लिखी हैं आप ने आदरणीय गीता पुरोहित जी . बधाई आप को .

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