कविता

कर्मवीर

जो गिरकर उठ चलना सीखे
वही क्रम है जीवन का
कर्मवीर तो हार न माने
कभी जीत और हार का

…क्या मर्म है सत्य का
इसको कोई समझ न पाते
जन्म मरण से विरहित होकर
सुख दुःख से बच न पाते
चिंतन मंथन से पथ मिलता
त्रुटियों के परिहार का
कर्मवीर तो हार न माने
कभी जीत और हार का

दुःख का रोना रोने से
कभी न कोई जीता है
हंस कर सहन कर लेता हे जो
वही अमृत को पिता है
आत्म विश्वास ही जीवन में
द्रढ़ता के आधार का

कर्मवीर तो हार न माने
कभी जीत और हार का

जी भी होता अपने जीवन में
वह अपने कर्मो का पाता है
कभी लगता है दंड
कभी वही पुरस्कार बन जाता है
जो राह पकड़ता सत्य की
और करता प्रबल समर्थन उसका
कर्मवीर तो हार न माने
कभी जीत और हार का

स्वाति “सरू” जैसलमेरिया
जोधपुर

स्वाति जैसलमेरिया

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