गज़ल
दिल से जिसे चाहकर भी भुलाया न गया।
आँखों में भी उन्हें यूं फिर छुपाया न गया।
महकते गुलों की थी महकती सी खुशबू
उनसे भी ज़ख्म दिल का मिटाया न गया।
खामोशी भी रह रहकर एहसास दिलाने लगी
लफ्ज़ों के हुनर से जिसे समझाया न गया।
गैर होकर भी वो लगने लगे थे अपने से
अपने वो कैसे थे जिनसे हमें अपनाया न गया।।।
कामनी गुप्ता ***
बहुत खूब!!
धन्यवाद जी
बहुत खूब !
हौंसला बड़ाने के लिए धन्यवाद सर जी
बहुत सुंदर
धन्यवाद जी