जो रस्ते क्रूर होते/ग़ज़ल
जो रस्ते क्रूर होते, कंटकों वाले।
चला करते हैं उनपर, हौसलों वाले।
जड़ों से हैं जुड़े तरुवर, ये जो इनको
डरा सकते न मौसम, आँधियों वाले।
ये हैं बगुले भगत, जो भोग की खातिर
धरा करते वसन हैं, योगियों वाले।
बचो उन किन्नरों से, जालघर पर जो
रचाते भेस अक्सर, नारियों वाले।
सजग रहना सदा उन दुश्मनों से तुम
जो रख अंदाज़ मिलते, दोस्तों वाले।
तक़ाज़ा देश का है साथ जुट जाओ
भुलाकर भेद मस्जिद, मंदिरों वाले।
मुड़े किस ओर जाने मुल्क की किश्ती
कि कर, पतवार पर हैं लोभियों वाले।
बसाओ दिल समय है ‘कल्पना’ अब भी
कि लौटो छोड़कर घर पत्थरों वाले।
— कल्पना रामानी
सुंदर गीतिका
हार्दिक आभार
लाजवाब गजल!!
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर ग़ज़ल !
हार्दिक आभार आदरणीय …
प्रिय सखी कल्पना जी, अति सुंदर गज़ल के लिए आभार.
बहुत बहुत धन्यवाद लीला जी