गीत/नवगीत

गीत : रूप तेरा मन बसा

रूप तेरा मन बसा यूँ, फूल ज्यों मकरंद है।
वो हमेशा झिलमिलाए,ज्यों गगन में चंद है॥

बात महकी रातरानी,प्राण में बिखरी हुई।
याद अनुपम चाँदनी बन,और भी निखरी हुई।
पढ़ लिया जिसको नज़र ने,गीत ग़ज़लेँ छंद है।
रूप तेरा मन बसा यूँ,फूल ज्यों मकरंद है॥1॥

बीन में हो रागिनी सी,तार में झंकार हो।
काव्य की हो कल्पना तुम,जिंदगी आधार हो॥
दुग्ध सी मुस्कान उज्ज्वल,डालती नव फंद है।
रूप तेरा मन बसा यूँ,फूल ज्यों मकरंद है॥2॥

रूठना मुझसे तुम्हारा,बैठना जा दूर फिर।
मैं मनाऊँ किस तरह से,सोचकर मजबूर फिर॥
मान खुद से खिलखिलाना,ये हृदय में बंद है।
रूप तेरा मन बसा यूँ,फूल ज्यों मकरंद है॥3॥

— पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य स्वर्ण पदक सहित),यू.जी.सी.नेट (पाँच बार) जन्मतिथि-03/07/1991 विशिष्ट पहचान -शत प्रतिशत विकलांग संप्रति-असिस्टेँट प्रोफेसर (हिंदी विभाग,जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट,उत्तर प्रदेश) रुचियाँ-लेखन एवं पठन भाषा ज्ञान-हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी,उर्दू। रचनाएँ-अंतर्मन (संयुक्त काव्य संग्रह),समकालीन दोहा कोश में दोहे शामिल,किरनां दा कबीला (पंजाबी संयुक्त काव्य संग्रह),कविता अनवरत-1(संयुक्त काव्य संग्रह),यशधारा(संयुक्त काव्य संग्रह)में रचनाएँ शामिल। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। संपर्क- ग्राम-टीसी,पोस्ट-हसवा,जिला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)-212645 मो.-08604112963 ई.मेल[email protected]

One thought on “गीत : रूप तेरा मन बसा

  • रूठना मुझसे तुम्हारा,बैठना जा दूर फिर।

    मैं मनाऊँ किस तरह से,सोचकर मजबूर फिर॥

    मान खुद से खिलखिलाना,ये हृदय में बंद है।

    रूप तेरा मन बसा यूँ,फूल ज्यों मकरंद है॥3॥ बहुत खूब .

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