आस्था
जीवन की इस यज्ञ वेदी को
सजा कर अपने तप से
बिना किसी चाहना के
पूर्ण समर्पित भाव से
होम कर अहं का
होते हैं दर्शन देव के
और मिलता है
वह वरदान जिससे
सारे कष्ट उड़ जाते हैं
वाष्प बनकर
और फिर शीतल हो
प्रसन्नता के पुष्प
फुहार बन झरते हैं
सुवासित हो जाता है
सारा वातावरण
कण-कण से निकलता है
सकारात्मकता का प्रकाश
और वहीं से दिखने लगते
दूर क्षितिज में मिलते
धरती-आकाश §
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कि साधना में ही समाधान है ….. !! शिप्रा !!
Sundar likha
धन्यवाद राज मालपानी जी