कविता

आस्था

11219392_866011310147608_9215736690710958760_nजीवन की इस यज्ञ वेदी को
सजा कर अपने तप से
बिना किसी चाहना के
पूर्ण समर्पित भाव से
होम कर अहं का
होते हैं दर्शन देव के
और मिलता है
वह वरदान जिससे
सारे कष्ट उड़ जाते हैं
वाष्प बनकर
और फिर शीतल हो
प्रसन्नता के पुष्प
फुहार बन झरते हैं
सुवासित हो जाता है
सारा वातावरण
कण-कण से निकलता है
सकारात्मकता का प्रकाश
और वहीं से दिखने लगते
दूर क्षितिज में मिलते
धरती-आकाश §
.
कि साधना में ही समाधान है ….. !! शिप्रा !!

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - shipradkhare@gmail.com

2 thoughts on “आस्था

  • राज मालपानी

    Sundar likha

    • शिप्रा खरे

      धन्यवाद राज मालपानी जी

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