कविता

अनंत प्रेम दो

मैं अधीर हूँ
शाँत करो
अनंत प्रेम दो
हृदय मे धरो
स्वप्न मे तुम रहो
जीवन मे तुम रहो

मेरी जिव्हा
मेरे नेत्र
मेरे हाथ
और कलम बनो
मेरी कविताओं मे
गीतों मे
तुम ही रहो
छंद बनो, बंध बनो
अलंकार और श्रृंगार बनो
सजाओ मेरी रचनाएँ
मेरे गीत, गज़लें
और मेरा प्रेम

चमको सितारों की तरह
छाओ घटाओं की तरह
बसा लो
नयनों के काजल मे
छुपा लो
अपने आँचल मे
बिंदिया, झुमके, कंगन
मुझसे अपना श्रृंगार करो
अधरों की लाली बनाकर
समीप ला दो
अपने मन मंदिर मे
मेरी मूरत सजा दो

मैं तरसता हूँ
पागल बरसता हूँ
मेरी बूंदों से स्नान करो
मेरी भावनाओं का
सम्मान करो
तुम देवी हो
कल्याण करो

दूसरी किसी युक्ति से
नहीं युक्त हो सकता हूँ
बस तुम्हारे सान्निद्य से
मैं मुक्त हो सकता हूँ
तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाकर
मेरे सब पाप धुल जाएँगे
तुम्हारे हृदय मे समाकर
मुझे दोनों लोक मिल जाएंगे
मेरे प्रति उदारता दिखाओ
हृदय मे बसाकर
विशालता दिखाओ
छुपालो दुनिया से
कोई पहचान ना सके
हम एक हो जाएँ
प्रेम मे खो जाएँ

अर्जुन सिंह नेगी

नाम : अर्जुन सिंह नेगी पिता का नाम – श्री प्रताप सिंह नेगी जन्म तिथि : 25 मार्च 1987 शिक्षा : बी.ए., डिप्लोमा (सिविल इंजीनियरिंग), ग्रामीण विकास मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। पेशा : एसजेवीएन लिमिटेड (भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम) में सहायक प्रबन्धक के पद पर कार्यरत l लेखन की शुरुआत : सितम्बर, 2007 से (हिमप्रस्थ में प्रथम कविता प्रकाशित) l प्रकाशन का विवरण (समाचार पत्र व पत्रिकाएँ): दिव्य हिमाचल (समाचार पत्र), फोकस हिमाचल साप्ताहिक (मंडी,हि.प्र.), हिमाचल दस्तक (समाचार पत्र ), गिरिराज साप्ताहिक(शिमला), हिमप्रस्थ(शिमला), प्रगतिशील साहित्य (दिल्ली), एक नज़र (दिल्ली), एसजेवीएन(शिमला) की गृह राजभाषा पत्रिका “हिम शक्ति” जय विजय (दिल्ली), ककसाड, सुसंभाव्य, सृजन सरिता व स्थानीय पत्र- पत्रिकाओ मे समय- समय पर प्रकाशन, 5 साँझा काव्य संग्रह प्रकशित, वर्ष 2019 में अंतिका प्रकाशन दिल्ली से कविता संग्रह "मुझे उड़ना है" प्रकाशितl विधाएँ : कविता , लघुकथा , आलेख आदि प्रसारण : कवि सम्मेलनों में भागीदारी l स्थायी पता : गाँव व पत्रालय –नारायण निवास, कटगाँव तहसील – निचार, जिला – किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) पिन – 172118 वर्तमान पता : निगमित सतर्कता विभाग , एसजेवीएन लिमिटेड, शक्ति सदन, शनान, शिमला , जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश) -171006 मोबाइल – 09418033874 ई - मेल :[email protected]

4 thoughts on “अनंत प्रेम दो

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत संदर कविता.

    • अर्जुन सिंह नेगी

      धन्यवाद सिंघल साहब जी

  • लीला तिवानी

    प्रिय अर्जुन भाई जी, हृदय की विशालता में ही अनन्य प्रेम का निवास हो सकता है. अति सुंदर कविता के लिए आभार.

    • अर्जुन सिंह नेगी

      उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद बहन

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