स्वास्थ्य के लिए भोजन
भोजन जीवन के लिए एक अति आवश्यक वस्तु है। भोजन से हमारे शरीर को पोषण प्राप्त होता है और उसमें होने वाली कमियों की भी पूर्ति होती है। शरीर की शक्ति बनाये रखने और उससे काम लेते रहने के लिए भोजन उसी प्रकार आवश्यक है, जिस प्रकार कार के लिए पेट्रोल या डीजल। हमारा जीवन भोजन पर ही निर्भर है। भोजन के अभाव में शरीर की शक्ति नष्ट हो जाती है और जीवन संकट में पड़ जाता है।
भोजन का स्वास्थ्य से बहुत गहरा सम्बंध है। भोजन करना एक अनिवार्य कार्य है। इसी प्रकार हम अन्य कई अनिवार्य कार्य करते हैं, जैसे साँस लेना, मल त्यागना, मूत्र त्यागना, स्नान करना, नींद लेना आदि। इन कार्यों में हमें कोई आनन्द नहीं आता, परन्तु भोजन करने में हमें आनन्द आता है। यह तो प्रकृति माता की कृपा है कि भोजन करने जैसे अनिवार्य कार्य में भी उसने स्वाद का समावेश कर दिया है, जिससे भोजन करना हमें बोझ नहीं लगता, बल्कि आनन्ददायक अनुभव होता है। लेकिन अधिकांश लोग प्रकृति की इस कृपा का अनुचित उपयोग करते हैं और स्वाद के वशीभूत होकर ऐसी वस्तुएँ खाते-पीते हैं, जो शरीर के लिए कतई आवश्यक नहीं हैं, बल्कि उलटे हानिकारक ही सिद्ध होती हैं। भोजन का उद्देश्य शरीर को क्रियाशील बनाए रखना होना चाहिए। परन्तु अधिकांश लोग जीने के लिए नहीं खाते, बल्कि खाने के लिए ही जीते हैं। ऐसी प्रवृत्ति वाले लोग ही प्रायः बीमार रहते हैं।
हमारे अस्वस्थ रहने का सबसे बड़ा कारण गलत खानपान होता है। यदि हम अपने भोजनअको स्वास्थ्य की दृष्टि से संतुलित करें और हानिकारक वस्तुओं का सेवन न करें, तो बीमार होने का कोई कारण नहीं रहेगा। हानिकारक वस्तुओं का सेवन करने पर ही रोग उत्पन्न होते हैं और उनका सेवन बन्द कर देने पर रोगों से छुटकारा पाना सरल हो जाता है। कई प्राकृतिक तथा अन्य प्रकार के चिकित्सक तो केवल भोजन में सुधार और परिवर्तन करके ही सफलतापूर्वक अधिकांश रोगों की चिकित्सा करते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान में तो खान-पान का सबसे अधिक महत्व है। इसमें किसी दवा आदि का सेवन नहीं किया जाता, बल्कि भोजन को ही दवा के रूप में ग्रहण किया जाता है और इतने से ही व्यक्ति स्वास्थ्य के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है। आयुर्वेद में कहा गया है-
न चाहार समं किंचिद् भैषज्यमुपलभ्यते।
शक्यतेऽप्यन्न मात्रेण नरः कर्तुं निरामयः।।
अर्थात् ”आहार के समान दूसरी कोई औषधि नहीं है। केवल आहार से ही मनुष्य रोगमुक्त हो सकता है।“
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. ७, सं. २०७३ वि.
विजय भाई , स्वास्थ सबंधी लेख अच्छा लगा . जब मैं भी भारत में होता था तो मुझे याद है ,अक्सर लोग हलवाई की दूकान या किसी समोसे पकौड़े या गोलगप्पे वालों की रेहडी पर ज़िआदा होते थे लेकिन फ्रूट की दुकानों पर कम . करारी चटपटी मिर्च मसाले वाली चीज़ें हमें ज़ादा स्वाद लगती है लेकिन फ्रूट हमारे गले में उतरता नहीं . अब तो बात ही और है ,पीजे बर्गर खाना हमें अच्छा लगता है .हम अपने पराठे को तो हैवी कह देते हैं लेकिन रबिश फ़ूड खाते समय हमें कुछ भी याद नहीं रहता . मेरा मानना है किः अगर हम सिर्फ एक पराठा दही के साथ खाएं तो यह पीजे बर्गर से कहीं ज़ादा उपयोगी होगा .
धन्यवाद, भाई साहब ! आपका कहना सही है. मुझे भी दही परांठा खाना पसंद है. पर आजकल के बच्चे फ़ास्ट फ़ूड के नाम पर कूड़ा खाना पसंद करते हैं और उनके साथ का मुझे बी ही वह थोडा बहुत झेलना पड़ता है.
धन्यवाद, भाई साहब ! आपका कहना सही है. मुझे भी दही परांठा खाना पसंद है. पर आजकल के बच्चे फ़ास्ट फ़ूड के नाम पर कूड़ा खाना पसंद करते हैं और उनके साथ का मुझे बी ही वह थोडा बहुत झेलना पड़ता है.
नमस्ते आदरणीय श्री विजय जी। स्वास्थ्य सम्बन्धी बहुत उपादेय लेख। लोकोपकार की दृष्टि से लिखित व प्रकाशित इस लेख के लिए हार्दिक बधाई। अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनुष्य के मन का सात्विक व आध्यात्मिक भावनाओं से पूर्ण होना तथा उचित समय की निद्रा व संयम पूर्ण जीवन होना भी आवश्यक है. यह कहना भी अनुचित न होगा कि आसन व प्राणायाम का भी अच्छे स्वास्थ्य में योगदान है। सादर।
आभार आदरणीय. आपका कहना पूरी तरह सत्य है. स्वस्थ रहने के लिए सात्विक भोजन के साथ उचित मात्र में योग और प्राणायाम अनिवार्य हैं. मैं ऐसा ही कर्ता हूँ और आप जानकर आश्चर्य करेंगे कि पिछले 20 वर्ष से मैंने एक पैसे की भी दावा नहीं खायी है. मैं हमेशा सक्रिय और पूर्ण स्वस्थ हूँ, केवल अपनी कानों की पुरानी बीमारी को छोड़कर.
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी। यह सत्य ही है कि यदि शरीर में अनावश्यक पदार्थ नहीं जाएंगे तो रोग नहीं होंगे। आज कल पर्यावरण प्रदुषण भी रोग का कारण बन गया है। इससे बचने के लिए यदि यज्ञ किया जाय उत्तम है। शायद इससे बचने का अन्य कोई उपाय नहीं है। हाँ अधिक से अधिक सावधान रहने के आवस्यकता है।
आभार आदरणीय. आपका कहना पूरी तरह सत्य है. स्वस्थ रहने के लिए सात्विक भोजन के साथ उचित मात्र में योग और प्राणायाम अनिवार्य हैं. मैं ऐसा ही कर्ता हूँ और आप जानकर आश्चर्य करेंगे कि पिछले 20 वर्ष से मैंने एक पैसे की भी दावा नहीं खायी है. मैं हमेशा सक्रिय और पूर्ण स्वस्थ हूँ, केवल अपनी कानों की पुरानी बीमारी को छोड़कर.
प्रिय विजय भाई जी, सच है आहार के समान दूसरी कोई औषधि नहीं है. अति सुंदर आलेख के लिए आभार.
बहुत बहुत आभार, बहिन जी.
बहुत बहुत आभार, बहिन जी.