हास्य-व्यंग्य : संघमुक्त भारत
आजकल मै लगभग खाली हूँ. मेरे खाली दिमाग में एक बिल्कुल नया अद्भुत आयडिया आया है. सोचता हूँ नीतिश जी का चेला बन जाऊँ. मुझे लगता है मैं उन्हें पटाने मे कामयाब हो जाऊँगा. एक बार चेला बना तो फिर चेला से सलाहकार बनने मे देर नही लगेगी. वैसे भी जब से उनके पी.के. काँग्रेस मे गये हैं फ्लाप हो रहे हैं. ऐसे मे मेरे जैसा सलाहकार उनके बहुत काम का होगा. बस मेरी नौकरी पक्की समझो.
सबसे पहले मेरा काम होगा नीतिश जी को उनकी महान घोषणा “संघमुक्त भारत” को पूरा करने हेतु सलाह देना. देश के चक्कर मे न पड हम पहले बिहार या पटना को संघ मुक्त का लक्ष्य बनायेंगे.
संघमुक्ति हेतु संघ के अंदर घुसना होगा. इसलिये मैं उनको सलाह दूँगा कि एक दिन सबेरे सबेरे 5 बजे नेकर पहनकर शाखा चलें. वहाँ 13 सूर्य नमस्कार करें, कुप्पा भैया- जै बजरंगी नारे के साथ डंड बैठक लगायें. फिर आखिर मे गोले मे बैठकर शाखा वाले न जाने रोज क्या खुसर फुसर करते हैं -उसको कान लगाकर सुने.
अब तक हम लोग संघ वालों का काफी भेद जान चुके होंगे. फिर थकान भी तो कोई चीज होती है. आज इतना ही. थोडा आराम करना होगा.
अगले दिन फिर 5 बजे सबेरे निकलना होगा. मुझे इन संघीयों पर कोफ्त भी हो रही है. पता नहीं किस मिट्टी के बने हैं. नामुराद थकते भी नही.
खैर आज का एजेंडा होगा- चंदन कौन है ? – इसका पता लगाना. इसके बहुत कार्यक्रम होते हैं. कोई तो बहुत ही खास है. इसको पकडा तो समझो आधी सफलता. आपातकाल मे भी पुलिस व ख़ुफ़िया वाले चन्दन को ही ज्यादा खोजते रहते थे.
नीतिश कुमार का संकल्प पूरा करने के लिए मुझे और भी बहुत शोध करना होगा. शाखा के बाद संघी भाई घरों मे जाकर संपर्क के नाम पर क्या बात करते हैं, नैपुण्य वर्ग, OTC, ITC और न जाने क्या क्या?
मै अपने ख्याली किले बनाने मे पूरी ताकत से जुटा था कि अचानक मेरी पत्नी ने सब गुड गोबर कर दिया. बोली — अरे पहले अपने मुहल्ले की एक शाखा बंद करके दिखायें, फिर संघ मुक्ति की बात करें.
उसने सौ बात की एक बात कह दी. लेकिन मेरी तो अच्छी खासी नौकरी लगते लगते रह गयी. अब मै क्या करूँ. आप ही बताइये.
— गोविन्द राम अग्रवाल
बहुत करारा व्यंग्य !