गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : किसी को वार ने लूटा किसी को हार लूटा

बहर- 1222 1222 1222 1222

किसी को वार ने लूटा किसी को हार ने लूटा
मगर हमको मुहब्बत के दिले इज़हार ने लूटा।

वो आते हैं कमाने को यहाँ दो जून की रोटी
खिलौना हाथ से जिनके समय की मार ने लूटा

नहीं है नींद आँखों में ये’ दिल बेचैन रहता है
मे’रे दिल का सुकूँ दिलवर तुम्हारे प्यार ने लूटा

बडे आबाद थे हम भी खुदा के दर से जब आये
लुटाकर नेह झूँटा सा मुझे संसार ने लूटा

नहीं “चाहर” जमाने में जिसे अपना बना लूँ मैं
किया जो पींठ पीछे से मुझे उस वार ने लूटा

शिव चाहर “मयंक”, आगरा

शिव चाहर 'मयंक'

नाम- शिव चाहर "मयंक" पिता- श्री जगवीर सिंह चाहर पता- गाँव + पोष्ट - अकोला जिला - आगरा उ.प्र. पिन नं- 283102 जन्मतिथी - 18/07/1989 Mob.no. 07871007393 सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , अधिकतर छंदबद्ध रचनाऐ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,देश के अनेको मंचो पर नियमित कार्यक्रम। प्रकाशाधीन पुस्तकें - लेकिन साथ निभाना तुम (खण्ड काव्य) , नारी (खण्ड काव्य), हलधर (खण्ड काव्य) , दोहा संग्रह । सम्मान - आनंद ही आनंद फाउडेंशन द्वारा " राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान" वर्ष 2015 E mail id- [email protected]