ग़ज़ल : किसी को वार ने लूटा किसी को हार लूटा
बहर- 1222 1222 1222 1222
किसी को वार ने लूटा किसी को हार ने लूटा
मगर हमको मुहब्बत के दिले इज़हार ने लूटा।
वो आते हैं कमाने को यहाँ दो जून की रोटी
खिलौना हाथ से जिनके समय की मार ने लूटा
नहीं है नींद आँखों में ये’ दिल बेचैन रहता है
मे’रे दिल का सुकूँ दिलवर तुम्हारे प्यार ने लूटा
बडे आबाद थे हम भी खुदा के दर से जब आये
लुटाकर नेह झूँटा सा मुझे संसार ने लूटा
नहीं “चाहर” जमाने में जिसे अपना बना लूँ मैं
किया जो पींठ पीछे से मुझे उस वार ने लूटा
— शिव चाहर “मयंक”, आगरा