गीत/नवगीत

सच्चाई को ख़ार मिल रहे…

सच्चाई को ख़ार मिल रहे, झूठ के दामन फूल, ज़माना बदल गया।
झूठ हो रहा महिमा मंडित सत्य फांकता धूल, जमाना बदल गया॥

छल और धोखा जीत रहा नित, रीति नीति लाचार हुई।
झूठ के सर पर ताज सज रहा, सत्य साधना तार हुई॥
जीत रहा पाखंड ढोंग अब, हारे धर्म उसूल, ज़माना बदल गया…

रिश्ते नाते हुए गौण हो गये, दौलत सबसे बडी हुई।
संस्कृति सब भूल रहे, मर्यादा पग में पडी हुई॥
अन्याय फूलता फलता है, और न्याय हुआ निर्मूल, ज़माना बदल गया….

संत हो गये व्याभिचारी, कुछ व्यापारी बन बैठे।
नेता सेवक नही रहे अब, अत्याचारी बन बैठे॥
देशभक्ति की परिभाषा की, नफ़रत हो गयी मूल, ज़माना बदल गया….

दुष्ट भेडिये धार रहे हैं, अब भेडों का भेष यहां।
राजनीति में बचा नही कुछ, नीति जैसा शेष यहां॥
कुंठित शाशक उडा रहे हैं, महापुरुषों पर धूल, ज़माना बदल गया….

मानवता मर मर जीती है, धर्म बना आतंक का रक्षक।
मर्यादा पालक ही बन गये, देखो मर्यादा के भक्षक॥
बिन सोचे बिन समझे, कहते कुछ भी ऊल जूलूल, ज़माना बदल गया…..

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.