कविता

उठो अब

एक कोना है तुम्हारे नयनों का

जहाँ से बहती है अनवरत धारा

बंद कर ये अश्रुओं का बहाना

और मार दम भर कर हुँकारा।

आँखों में वो आग ला दे

कि पानी गिरने से पहले ही जाए सूख।

जला अंतडियों को तू इस तरह

कि दाना पड़ने से पहले, मर जाए भूख।

हाथों की नर्मी किस काम की

इसमें तू वो गर्मी ला दे

कि जो तू गलती से भी हाथ लगाए

तो ये हाथ जंजीरों को जला दे।

गले में वो चीख पैदा कर

कि आसमान भी सुनकर फट पड़े।

वो फूँक ला अपने फेफड़ों में

कि समंदर भी दो हिस्सों में बँट पड़े।

वो आहट पैदा कर चाल में अपनी

कि तेरे आने भर से राह में

सब तरह की समस्याऎं सरपट भागें

कुछ ऎसी हो ताक़त तेरी बाँह में।

अच्छा चल! माना तू नहीं शरीर का इतना धनी।

तो कम से कम इतना ही कर,

दिखा कि हौसले हैं तेरे बुलंद, काबू है मन पर

और तू फौलाद न सही, फौलादी है जिगर।

 

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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]