उठो अब
एक कोना है तुम्हारे नयनों का
जहाँ से बहती है अनवरत धारा
बंद कर ये अश्रुओं का बहाना
और मार दम भर कर हुँकारा।
आँखों में वो आग ला दे
कि पानी गिरने से पहले ही जाए सूख।
जला अंतडियों को तू इस तरह
कि दाना पड़ने से पहले, मर जाए भूख।
हाथों की नर्मी किस काम की
इसमें तू वो गर्मी ला दे
कि जो तू गलती से भी हाथ लगाए
तो ये हाथ जंजीरों को जला दे।
गले में वो चीख पैदा कर
कि आसमान भी सुनकर फट पड़े।
वो फूँक ला अपने फेफड़ों में
कि समंदर भी दो हिस्सों में बँट पड़े।
वो आहट पैदा कर चाल में अपनी
कि तेरे आने भर से राह में
सब तरह की समस्याऎं सरपट भागें
कुछ ऎसी हो ताक़त तेरी बाँह में।
अच्छा चल! माना तू नहीं शरीर का इतना धनी।
तो कम से कम इतना ही कर,
दिखा कि हौसले हैं तेरे बुलंद, काबू है मन पर
और तू फौलाद न सही, फौलादी है जिगर।
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