गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरी पाक मोहब्बत का इम्तहान है
जो जख्म दे रहा है वही मेंरी जान है।

दिल को गुरूर ऐसा उसपर हुआ सुनों
मिटता नहीँ है दिल पर ऐसा निशान है।

सांसो की तेज उल्झन रह रह के बढ़ रही
जैसे कि धड़कनो में आया तूफ़ान है ।

कोई किसी को चाहे ये रब की इनायत है
मैं ख़ुश हूँ कि दिलमें तेरा मुकाम है।

कोई गिला नहीँ है सौ बार कह रही हूँ
मैं सर्मिंनदगी सही पर तू मेंरी शान है।

तुम पास बुलाओ य मुझे दूर करो जानिब
मेंरी रूह में बसी है जो वो तेरी जान है।

— पावनी दीक्षित ‘जानिब’

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर

One thought on “ग़ज़ल

  • अर्जुन सिंह नेगी

    बहुत खूब कहा!

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