दो शिशु गीत
हाथी पापा चले सैर को
हाथी पापा चले सैर को
लेकर अपने बाल-गोपाल,
एक कहे हम चलें मुंबई,
एक कहे हम नैनीताल.
इतने में हुआ हरा जो सिग्नल,
पापा हुए सड़क के पार,
पहुंच न पाए कहीं बेचारे,
रह गए पीछे बाल-गोपाल.
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तितली रानी कहां चली?
तितली रानी कहां चली?,
पूछ रही है लाल कली,
‘फूलों को तो सहलाती हो,
क्या मैं लगती नहीं भली?’
‘अभी तुम्हारा बचपन प्यारा’,
तितली बोली ‘सुनो कली,
सह न सकोगी बोझ हमारा,
तुम खेलो मैं दूर भली.’
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दोनों बालगीत सुंदर है. बधाई लीला तिवानी जी .
दोनों बालगीत सुंदर है. बधाई लीला तिवानी जी .
प्रिय ओमप्रकाश भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
आदरनीय लीला जी , आप वास्तव में सुन्दर बालगीत लिखे है. इसलिए प्रशंसा तो बनती है. सादर.
प्रिय ओमप्रकाश भाई जी, आपने भी प्रतिक्रिया बहुत सुंदर लिखी है, इसलिए प्रशंसा तो बनती है. सादर. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
बहुत सुन्दर रचना ,एक एक लाइन में रूह दिखाई दी .
प्रिय अर्जुन भाई जी, आपके रूहानी नज़रिए को सलाम. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
उम्दा रचना आदरणीया
प्रिय रमेश भाई जी, उम्दा प्रतिक्रिया के लिए आभार.
प्रिय रमेश भाई जी, उम्दा प्रतिक्रिया के लिए आभार.
सुन्दर गीत
प्रिय अर्जुन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
दोनों रचना मन लुभाया
आपने भी हमें बहुत हर्षाया.