राजनीति
हानि लाभ जीवन मरण – बिधि ने दिया बनाय
जोड़ घटाना कर रहे धरम करम मन लाय
माया बिहसि कही इक बारा, राजनीति मूरख संसारा
धरम करम सपने नहि देखा, नीति अनीति राज मन लेखा
राज काज अनुपम अनुरागा, भाव विभाव सरस मन लागा
करनी कथनी अंतर कैसे, जड़ जीवन मन फंकस जैसे
हरि के हिय उदभव हुई – राजनीति यश धाम
सतयुग से द्वापर चली कलियुग मे बदनाम
राजनीति पढ़ने लगा – महा वृहद है ज्ञान
साम दाम अरु दंड से भेद लिया पहचान
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
आज राजनीति अपने स्तर को खोती जा रही है ———–