कविता

धरती माँ है

खोद रहा है आदमी
विकास के नाम पर
कर रहा है
धरती का सीना छलनी !
फिर भी चुपचाप
सह रही है
इसकी चुप्पी
कुछ कह रही है
माँ हूँ तुम्हारी
रक्षा करो
विकास चाहिए
या विनाश
चुनाव करो
तुम्हारा मार्ग
विकास की तरफ नही
विनाश को ओर रहा है
ये तो माँ है
ममता धारण किये
सहती जा रही है
गैंती, बेलचों और
बड़ी-बड़ी मशीनों की
घातक चोटें l
खडी कर दी हैं
गगनचुम्बी ईमारतें
दबी जा रही
भोज तले माँ
हवा और पानी
भूल गए हैं अपनी राह
बह रहे हैं
प्लास्टिक और लोहे की
पाईपों में
धरा प्यासी है
फसल, रसायनों से
उगाई जा रही
गाड़ियां बढ़ती जा रही हैं
बुधि हावी होकर
विवेक को कुतर रही है
विज्ञान शस्त्र से मानव
काटता जा रहा है
हाथों को , पैरों को
माँ के हर अंग को
सीता सी धरती
निश्छल व शांत
ममता के वश
सह रही है हर पीड़ा चुपचाप
धरती का बेटा – मानव
रक्षक नही
भक्षक बन बैठा है !
यातनाएँ दे रहा है
जिसने जीने का आधार दिया
सुख- सुविधाएँ दी
विज्ञान के उन्माद में
भूल गया
धरती माँ है !

अर्जुन सिंह नेगी

अर्जुन सिंह नेगी

नाम : अर्जुन सिंह नेगी पिता का नाम – श्री प्रताप सिंह नेगी जन्म तिथि : 25 मार्च 1987 शिक्षा : बी.ए., डिप्लोमा (सिविल इंजीनियरिंग), ग्रामीण विकास मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। पेशा : एसजेवीएन लिमिटेड (भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम) में सहायक प्रबन्धक के पद पर कार्यरत l लेखन की शुरुआत : सितम्बर, 2007 से (हिमप्रस्थ में प्रथम कविता प्रकाशित) l प्रकाशन का विवरण (समाचार पत्र व पत्रिकाएँ): दिव्य हिमाचल (समाचार पत्र), फोकस हिमाचल साप्ताहिक (मंडी,हि.प्र.), हिमाचल दस्तक (समाचार पत्र ), गिरिराज साप्ताहिक(शिमला), हिमप्रस्थ(शिमला), प्रगतिशील साहित्य (दिल्ली), एक नज़र (दिल्ली), एसजेवीएन(शिमला) की गृह राजभाषा पत्रिका “हिम शक्ति” जय विजय (दिल्ली), ककसाड, सुसंभाव्य, सृजन सरिता व स्थानीय पत्र- पत्रिकाओ मे समय- समय पर प्रकाशन, 5 साँझा काव्य संग्रह प्रकशित, वर्ष 2019 में अंतिका प्रकाशन दिल्ली से कविता संग्रह "मुझे उड़ना है" प्रकाशितl विधाएँ : कविता , लघुकथा , आलेख आदि प्रसारण : कवि सम्मेलनों में भागीदारी l स्थायी पता : गाँव व पत्रालय –नारायण निवास, कटगाँव तहसील – निचार, जिला – किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) पिन – 172118 वर्तमान पता : निगमित सतर्कता विभाग , एसजेवीएन लिमिटेड, शक्ति सदन, शनान, शिमला , जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश) -171006 मोबाइल – 09418033874 ई - मेल :[email protected]

3 thoughts on “धरती माँ है

  • मनोज चौहान

    बहुत खूब ….धरती माँ है ,मगर इंसान हर रोज कुपूत ही बनता जा रहा है ….सुंदर सृजन हेतु बधाई अर्जुन नेगी जी ….!

  • अर्जुन सिंह नेगी

    धन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया से हैसला मिलता है

  • लीला तिवानी

    प्रिय अर्जुन भाई जी, धरती माँ के अतुलनीय धैर्य का कोई जवाब नहीं. अति सुंदर व सार्थक कविता के लिए आभार.

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