कविता : जाने कहां गये वो दिन
जाने कहां गये वो दिन
वो गर्मी की रातें
वो छत का छिड़काव कर
वो पिताजी का ऑफिस
से आ सीधे छत पर जाना
झिलमिल तारों की छांव
सप्त ऋषि मंडल
ध्रुव तारों का पिताजी का
परिचय कराना
जाने कहां गये वो दिन
सब मिल बैठ खाना
ठंडी बयार में
तारों की छाव तले
ठंडा ठंडा मटके का
शीतल जल पी
बतियाते कहानी
सुनते सुनते सो जाना
मीठे सपनों में खो जाना
जाने कहां गये वे दिन
बंद चार दीवारी में
एसी की ठंडक में
वो बात कहां
बिजली गुल हो जाय
तो ……
हाल बैहाल छत पर
ना बिजली जाने की
परवाह ठंडी बयार
जाने कहां गये वो दिन
छत पर ही आस पड़ोस
से बतियाना वो पल
वो अहसास
जाने कहां गुम हो गये
वे दिन.
— गीता पुरोहित