कौन संवारेगा, कौन संभालेगा?
विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून के लिए विशेष गीत
धरती अपनी हम न संवारें कौन संवारेगा
अपनी चीज़ को खुद न संभालें कौन संभालेगा
1.हरे-भरे ‘गर पेड़ काट लें धरती बंजर हो
आंधी-तूफां सुनामी-नरगिस बड़े बवंडर हों
इनसे खुद को हम न बचाएं कौन बचाएगा
अपनी चीज़ को खुद न संभालें कौन संभालेगा
2.खुद से पूछें अन्न-जल की बरबादी क्यों करते?
धरती प्यासी बच्चे भूखे हैं आहें भरते
अपने मन को खुद न खंगालें कौन खंगालेगा
अपनी चीज़ को खुद न संभालें कौन संभालेगा
3.ग्लोबल वार्मिंग इतनी बढ़ी, हम खुद ही परेशां हैं
ज़िम्मेदारी भूल के अपनी खुद ही पशेमां हैं
ग्लोबल वार्मिंग हम न हटाएं कौन हटाएगा
अपनी चीज़ को खुद न संभालें कौन संभालेगा
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वाहह लाजवाब विश्व पर्यावरण दिवस पर सुंदर सृजन के लिए बधाई बहन जी
प्रिय राजकिशोर भाई जी, लाजवाब व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
प्रिय राजकिशोर भाई जी, लाजवाब व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
इस छोटी सी कविता में बहुत कुछ है . पर्यावरण को हम ही अशुद्ध करते हैं और हम ही इसे शुद्ध रखने की कोशिश कर सकते हैं . यह जो ब्रिक्ष काट काट कर अपना ही भविष्य बर्बाद कर रहे हैं ,क्या इतनी भी हम को समझ नहीं है किः ब्रिक्ष हमें ऑक्सीज़न के माध्यम से जीवन दान देते हैं . रही बात फ़ूड की ,तो फैंकने की बजाये अगर किसी दुसरे का पेट भर दें तो हमारा कौन सा जोर लगता है . यह जो पचास डिग्री तापमान हो रहा है और कभी बाड़ से हम नुक्सान उठाते हैं तो यह कुदरत के साथ खिलवाड़ करने से ही हो रहा है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने पूरे गीत का सार ही बता दिया है. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.