मधुगीति : खो गया क्या वत्स मेरा !
खो गया क्या वत्स मेरा, विधि के व्यवधान में;
आत्म के उत्थान में या ध्यान के अभियान में !
उत्तरों की चाह में या प्रश्न की बौछार में;
अनुभवों की अाग में या भाव के व्यवहार में !
सहजता के शोध में या अहंकारी मेघ में;
व्याप्तता के बोध में या शून्य के आरोह में !
अचेतन की चेतना को दे रहा विस्तार क्या;
विश्व में विश्वास भर कर बह रहा क्या उत्स में !
अलौकिक अभिज्योत्सना क्या ले रहा उद्गार में;
माधुरी ‘मधु’ उर बिखेरे सुर दिया क्या जगत में !
— गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा