गीतिका/ग़ज़ल

कितनी राहत है

कितनी राहत है चाहत में तेरे

तुम्हें याद करने से ही

हर ग़म दूर हो जाता है

दर्द काफ़ूर हो जाए कहाँ

चेहरे पर नूर आ जाता है

होठों पे हंसी रहती है अब सदा

मिस्री घुल गई है कड़वाहट में मेरेे

कितनी राहत है चाहत में तेरे।

 

अँधेरे में चाँद खिल जाता है

झिलमिलाने लगते हैं सितारे

धूप भी छाँव जैसा है तुमसे

मझदार भी लगे हैं किनारे

कदमों तले झुका लगे आसमां े

चांदनी चमकी है मुस्कराहट से तेरे

कितनी राहत है चाहत में तेरे।

 

हर ग़म फ़ना हो जाता है

एक तेरे होने के एहसास सें

हँसने लगती हैं तन्हाइयां मेरी

बहार आ जाती है बियाबां में

सपनों का शहर आबाद है तुमसे

संगीत है जीवन में आहट से तेरेे

कितनी राहत है चाहत में तेरे।

 

 

सुमन शर्मा

नाम-सुमन शर्मा पता-554/1602,गली न0-8 पवनपुरी,आलमबाग, लखनऊ उत्तर प्रदेश। पिन न0-226005 सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें- शब्दगंगा, शब्द अनुराग सम्मान - शब्द गंगा सम्मान काव्य गौरव सम्मान Email- [email protected]

One thought on “कितनी राहत है

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लाजवाब

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