क्षणिका

जीना-मरना परोपकार के लिए

जब भी हम-आप किसी किताब को खोलते हैं और पढ़ते हैं,
तो एक वृक्ष मुस्कुराकर संदेश देता है,
कि मृत्यु के बाद भी जीवन होता है,
भले ही संदेश का यह संकेत हम न समझ पाते हों,
पर यह तो सच है,
कि वृक्ष का जीना भी परोपकार के लिए होता है
और उसका मरना भी परोपकार के लिए ही होता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “जीना-मरना परोपकार के लिए

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह वृक्ष महत्ता को दर्शाती रचना के लिए आभार बहन जी

    • लीला तिवानी

      प्रिय राजकिशोर भाई जी, सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

  • ब्रिक्ष की महमा और सन्देश बहुत अच्छा लगा .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

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