कबीर छन्द
कबीर छन्द [16+11] =27 अंत मे चरनांत दीर्घ-लघु [2+1]
आँगन मे चहु ओर फिरे हरि- हिरना जैसी प्रीति
कस्तूरी मृग नाभि बसत है – मन की कैसी रीति
मंदिर मस्जिद हरि को खोजत – मूरख ज्ञानी नीति
हिरना जैसा मत भटकाओ- स्वारथ मन भव भीति
हिय के पट को खोलि क देखो – सरस मधुर संगीत
देखत-देखत युग बित जाए – समय सका नहि जीत
माया निरमल छाया देखो मनवा बादल मीत
मधुर मधुर झंकार किया मन- माया पायल गीत
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
प्रिय ब्लॉगर राजकिशोर भाई जी, अति सुंदर कबीर छंद सिखाने के लिए आभार.
बहन जी प्रणाम आपकी स्नेहिल आत्मीय हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार