कविता : जीने का मज़ा
यूँ हर मोड़ को जीने का मजा
तेरे साथ भी लेते
तो तेरी बेरुखी के सहारे न खोते
ये तो मेरे आंसुओं की शक्ल है
इसे कविता न समझिये
पूरी होने से पहले
बह जाएंगे
यूं दिल की गुस्ताखियों की सजा
लफ्जों को देते
तो किसी कागज़ पे न लिख पाते
ये तो मेरे बेबस पल हैं
इसे दास्ताँ न समझिये
कुछ देर में संभल जाएंगे
यूँ मिलने बिछड़ने को ही
मोहब्बत कहते
तो किसी दास्ताँ में आंसू न होते
ये तो मेरे उम्र के कुछ साल हैं
इसे बचपन न समझिए
तुम मिलो तो गुजर जाएंगे
न मिलो तो भी ……
—-सचिन परदेशी ‘सचसाज’
अति सुंदर रचना