कविता

कविता : जीने का मज़ा

यूँ हर मोड़ को जीने का मजा
तेरे साथ भी लेते
तो तेरी बेरुखी के सहारे न खोते

ये तो मेरे आंसुओं की शक्ल है
इसे कविता न समझिये
पूरी होने से पहले
बह जाएंगे

यूं दिल की गुस्ताखियों की सजा
लफ्जों को देते
तो किसी कागज़ पे न लिख पाते

ये तो मेरे बेबस पल हैं
इसे दास्ताँ न समझिये
कुछ देर में संभल जाएंगे

यूँ मिलने बिछड़ने को ही
मोहब्बत कहते
तो किसी दास्ताँ में आंसू न होते

ये तो मेरे उम्र के कुछ साल हैं
इसे बचपन न समझिए

तुम मिलो तो गुजर जाएंगे
न मिलो तो भी ……

—-सचिन परदेशी ‘सचसाज’

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

One thought on “कविता : जीने का मज़ा

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अति सुंदर रचना

Comments are closed.