कुंडलिया : धीरज
धीरज मन झरने लगा, कटा आम का पेड़
गरमी बढ़ती जा रही, दिखे पेड़ इक रेड़
दिखे पेड़ इक रेड, हरे सब मन की गरमी
रहे हज़ारों लोग, देख उनकी हठ धरमी
कहे राज कविराय, फँसे जब कीचड़ नीरज
नहीं छोड़ता साथ गजब है उसका धीरज
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
धीरज मन झरने लगा, कटा आम का पेड़
गरमी बढ़ती जा रही, दिखे पेड़ इक रेड़
दिखे पेड़ इक रेड, हरे सब मन की गरमी
रहे हज़ारों लोग, देख उनकी हठ धरमी
कहे राज कविराय, फँसे जब कीचड़ नीरज
नहीं छोड़ता साथ गजब है उसका धीरज
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
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प्रिय राजकिशोर भाई जी, अति सुंदर कुंडलिया के लिए आभार.
बहन जी प्रणाम हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार