जन्मना जाति व्यवस्था ने समाज में काम न करने वालों को ऊंचा और काम करने वालों को नीचा बना दिया : डा. आनन्द सिंह
ओ३म्
–गुरुकुल पौंधा के वार्षिकोत्सव में वर्णाश्रम सम्मेलन में पूर्व आईपीएस अधिकारी का सम्बोधन-
गुरूकुल पौंधा, देहरादून के सतरहवें वार्षिकोत्सव के अवसर वर्णाश्रम सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसे अनेक विद्वानों ने सम्बोधित किया। श्री आनन्द सिंह जी के सम्बोधन के कुछ अंशों को हम प्रस्तुत कर रहे हैं। वर्णाश्रम पर बोलते हुए श्री आनन्द सिंह, सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी ने कहा कि हमने अपने कुशल व योग्य कामगारों को समाज में नीच बना दिया। समाज में जो काम न करने वाले लोग थे, उन्हें धोखा देने वाले व काम न करने वाले व्यक्तियों ने भगवान व मन्दिर का डर दिखाया। उन्होंने स्वयं को समाज में ऊंचा बना लिया। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि समाज में हमारे ब्राह्मण व अन्य उच्च वर्ण के लोग काम नहीं करते। मेहनत न करने वाले सब लोग समाज में सबसे ऊंचे हो गये। यह ऊंचे लोग मेहनत व हाथ के काम नहीं करते। अब कुछ ने करना आरम्भ किया है। जो काम नहीं करते वह सबसे ऊंचे हो गये। राजपूत, ठाकुर आदि काम नहीं, वह ऊंचे हो गये। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि काम करने वालों को समाज में नीच बना दिया गया और काम न करने वालों को ऊंचा बना दिया गया। गंदगी करने वाले ऊंचे तथा सफाई का काम करने वाले नीच व अछूत बना दिए गये। विदेशों में बड़ी बड़ी वैज्ञानिक खोजें हुई हैं व हो रही हैं। प्रश्न उत्पन्न होता है कि हमारे यहां यूरोप के वैज्ञानिकों की तरह खोंजे क्यों नहीं होती? इसका कारण यह है कि हमारे काम न करने वालों को नीचा बना दिया गया। देश व समाज में श्रम का महत्व समाप्त होने से अव्यवस्था पैदा हुई है।
हमारे पूर्व ऋषि व विद्वान वर्णाश्रम व्यवस्था के नाम पर नई व्यवस्था देकर नया समाज बनाना चाहते थे। पर गुलामी के दिनों में हमारे पास राज व्यवस्था नहीं थी। यह समाज परिवर्तन की व्यवस्था राज व्यवस्था के द्वारा ही चल सकती थी। हम कोई नई उन्नत व विकसित सामाजिक व्यवस्था पैदा नहीं कर पाये। यदि हम जाति को भूलकर गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार शादी विवाह करते तो सामाजिक भेदभाव कम होता। हम अपने बच्चों के शादी विवाह भी अपनी पृष्ठभूमि वाले लोगों व वर्गों में ही करते हैं। जन्मना जाति प्रथा को हम आर्यसमाजी भी समाप्त नहीं कर पाये। जन्मना जाति व्यवस्था आर्यसमाज में भी किसी न किसी रूप में बनी हुई है। स्वामी दयानन्द सरस्वती नई सामाजिक व्यवस्था चाहते थे। हिन्दूओं की सामाजिक व्यवस्था में सुधार व परिवर्तन होना अपेक्षित था। श्री आनन्द सिंह जी ने स्वामी दयानन्द के कहे शब्दों को स्मरण कर कहा कि वह चाहते थे कि एक वेद मत समस्त भूगोल में प्रवृत्त हो जाये जिससे सभी लोग अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति कर सके। स्वामी दयानन्द जी चाहते थे कि भूगोल में गुण-कर्म-स्वभाव पर आधारित वैदिक वर्णाश्रम व्यवस्था स्थापित हो और वेदों का सर्वत्र प्रचार हो। हम किसी न किसी कारण, सामाजिक परिवर्तन के लिए आवश्यक, प्रचलित जन्मना जाति व्यवस्था को दूर न कर पाये। यह हमारी असफलता है।
संसार के सभी मनुष्यों की जाति एक ही है जिसे मनुष्य जाति कह सकते हैं। इसके केवल दो भेद किये जा सकते हैं एक स्त्री व दूसरा पुरुष। उन्होंने कहा कि यहां उपस्थित सभी लोग संकल्प लें कि हम सब अपने को मनुष्य जाति का मानेंगे और जन्मना जाति के कृत्रिम व्यवहार से दूर रहेंगे। हमारी एक मनुष्य जाति ही है अन्य कोई जाति नहीं है। इस जन्मना जाति व्यवस्था को हमें पूर्णतः समाप्त करना होगा। हमें अपने आचार्यों के सहयोग से अपने गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार अपने योग्य वर्ण व कार्यों का चुनाव करना है। उन्होंने कहा कि वैदिक वर्ण व्यवस्था एक प्रकार से मनुष्यों के गुणों के आधार पर श्रम का निष्पक्ष रूप से किया गया विभाजन है। विद्वान वक्ता ने वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्रों के अलग अलग कामों व कर्तव्यों की चर्चा की और इनके यथार्थ स्वरूप पर प्रकाश डाला। अतीत में किसी भी वर्ण, वर्ग व समूह के प्रति छुआछूत का तो कोई मतलब ही नहीं था। हमारी व्यवस्था अपने आपको उन्नत करने व ऊपर उठाने की है। हमारी गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था भी हमें ऊपर उठाने के लिए ही एक प्रभावशाली शिक्षा प्रणाली है। (श्री आनन्द सिह स्वयं गुरुकुल झज्जर के विद्यार्थी रहे हैं।) उन्होंने कहा कि मनुष्य सत्व, रज व तम गुणों के प्रभाव व इन से सम्बन्धित अपनी प्रवृत्ति के अनुसार कर्म करता है। सात्विक गुणों वाले मनुष्य परोपकार, दान आदि अच्छे अच्छे श्रेष्ठ काम करते हैं जबकि तामसिक और राजसिक प्रवृत्ति व गुणों वाले व्यक्ति के काम सात्विक गुणों की दृष्टि की तुलना में कहीं निम्नतर व निम्नतम होते हैं। इसको विद्वान वक्ता ने अनेक उदाहरण देकर स्पष्ट किया। वैदिक वर्ण व्यवस्था जीवन में श्रेष्ठ व उन्नत बनने की प्रतिस्पर्धा उत्पन्न कर उन्नति के अवसर प्रदान करती है जो सभी बुराईयों से मुक्त है। समयाभाव के कारण विद्वान वक्ता ने यहीं पर अपने वक्तव्य को विराम दिया।
गुरुकुल पौंधा के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव के आज दूसरे दिन प्रातः डा. सोमदेव शास्त्री के ब्रह्मत्व में सामवेद पारायण यज्ञ जारी रहा। उनके सहायक के रूप में गुरुकुल के आचार्य डा. यज्ञवीर जी उनके साथ विराजमान रहे। उन्होंने कुछ मन्त्रों की जीवनोपयोगी व्याख्यायें भी की। यज्ञ में मन्त्रपाठ गुरुकुल के दो ब्रह्मचारियों ने किया। दो वृहत यज्ञ कुण्डों में यज्ञ सम्पन्न किया जिसके चारों ओर सैकड़ों की संख्या में लोग श्रद्धापूर्वक उपस्थित रहे और वेदमन्त्रों व आचर्यों के उपदेशों का श्रवण किया। इसके बाद वर्णाश्रम सम्मेलन हुआ जिसे मुख्यतः बहिन कल्पना शास्त्री, आर्यविद्वान धर्मपाल शास्त्री, डा. रघुवीर वेदालंकार तथा डा. सोमदेव शास्त्री आदि ने सम्बोधित किया। सम्मेलन के मध्य में प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक श्री सत्यपाल सरल जी का प्रभावशाली भजन हुआ। उन्होंने भी वर्णाश्रम व्यवस्था पर बोलते हुए इसके नाम पर विद्यमान जन्मना जाति व्यवस्था की खामियां बताईं। संचालन गुरुकुल के ही एक पूर्व ब्रह्मचारी डा. रवीन्द्र आर्य ने योग्यतापूर्वक किया। गुरुकुल के युवा आचार्य डा. धनन्जय आर्य ने बीच बीच में कुछ महत्वपूर्ण सूचनायें दी। यह सम्मेलन गुरुकुल के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती की अध्यक्षता में हुआ। सम्मेलन के समापन पर उनके आशीवर्चन हुए। इस अवसर पर गुरुकुल के 8 मेधावी ब्रह्मचारियों को विभिन्न पुरुस्कारों से सम्मानित भी किया गया। पूर्व खेल मंत्री नारायण सिंह राणा भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। सायंकालीन सत्र में सामवेद पारायण यज्ञ जारी रहा और गुरुकुल सम्मेलन हुआ। इस उत्सव में देश भर से बड़ी संख्या में लोग पधारे हुए हैं। सबके निवास व भोजन की व्यवस्था गुरुकुल की ओर से की गई है। कार्यक्रम सफलता पूर्वक चल रहा है। रविवार को वार्षिकोत्सव का समापन होगा।
–मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, सजग व सचेत करने वाले अति सुंदर आलेख के लिए आभार.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। आपने मेरे लेख को पढ़ा एवं प्रतिक्रिया दी, इससे हार्दिक प्रसन्नता अनुभव होती है। यह मेरे तप की सिद्धि व फल प्राप्ति है जो सुख, शान्ति व संतोष दे रहा है। शायद इसी लिए मनुष्य लेखन में प्रवृत होता है। आपका आभार एवं धन्यवाद। सादर।
मनमोहन भाई , लेख अच्छा लगा .हमारे समाज की गिरावट का कारण ही उंच नीच का बोल बाला होना है .
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। राजनैतिक आरक्षण एवं वोट बैंक की राजनीती ने दलितों की समस्या को हानि पहुंचाई है। इसका समाधान केवल वेदों के विचारों को जन जन में प्रचार से ही हो सकता है। हमारी सरकार की धर्मनिरपेक्षता के नाम से अच्छी बैटन को भी सांप्रदायिक रूप दे दिया जाता है। इसके लिए दलितों व अंतज्यों को भी स्वछता, शिक्षा, मद्य मांस व विदेशी जीवन शैली व बातों का पूर्ण त्याग कर श्रेष्ठ गुण कर्म व स्वभाव को अपनाना होगा। सादर।