बालगीत – सपनों का भारत
ऐसा मेरे सपनों का भारत होगा |
सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे,
देश का ऊँचा नाम करेंगे,
जहाँ न कोई छोटा होगा, कोई बड़ा न होगा |
जहाँ न होंगे झगड़े – दंगे
कहीं न होंगे भूखे नंगे,
जाति – धर्म की जगह सिर्फ, भाई चारा ही होगा |
नहीं किसी का शोषण होगा,
न्याय और अधिकार मिलेगा,
जहाँ गरीबी नहीं दिखेगी, सबका विकास होगा |
हर घर मे बेटियाँ पढ़ेंगी,
अन्तरिक्ष की बात करेंगी,
चाँद और मंगल की धरती, पर अपना घर होगा |
ऐसा मेरे सपनों का भारत होगा |
-– अरविन्द कुमार ‘साहू’
अति सुंदर बालगीत.
अच्छा बालगीत !