श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौंधा के वार्षिकोत्सव में प्रसिद्ध वैदिक विद्वान डा. रघुवीर वेदालेकार पं. राजवीर शास्त्री सम्मान से आदृत
ओ३म्
5 जून, सन् 2016 के समापन सत्र में वेदों एवं सत्यार्थ प्रकाश के प्रसिद्ध विद्वान डा. रघुवीर वेदालंकार को पं. राजवीर शास्त्री की स्मृति में सम्मानित किया गया। डा. रघुवीर न केवल वेदों के शीर्षस्थ विद्वान ही हैं अपितु उन्होंने वैदिक विचारधारा पर उपदेश देने सहित उच्च कोटि के ग्रन्थों की रचना भी की है। आपने गुरुकुल पौंधा में रहकर इसके ब्रह्मचारियों को पढ़ाया भी है। आप गुरुकुल पौंधा के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के गुरुकुल झज्जर में सहपाठी भी रहे हैं और समय समय पर गुरुकुल गौतम नगर में आयोजित चतुर्वेंद पारायण यज्ञों के ब्रह्मा मनोनीत होकर उन्हें सम्पन्न भी कराते आ रहे हैं। गुरुकुल पौंधा से आपका विशेष प्रेम है। यही कारण है कि आपका अन्यत्र जाने का कार्यक्रम था जिसे गुरूकुल के आचार्य धनन्जय के निवेदन पर निरस्त कर आप यहां देहरादून पधारे। डा. धनन्जय जी ने ऋषिभक्तों को आपकी सेवाओं से अवगत कराया और आपके प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त की। अभिनन्दन कार्यक्रम के अन्तर्गत गुरुकुल के पूर्व ब्रह्मचारी और हरिद्वार के एक महाविद्यालय में प्रवक्ता डा. रवीन्द्र आर्य ने स्वलिखत संस्कृत भाषा के अभिनन्दन पत्र का वाचन किया। पं. राजवीर शास्त्री जी के दो पुत्रों एवं उनके परिवारजन गुरुकुल कांगड़ी में वेद विभाग के अध्यक्ष डा. दिनेश चन्द्र शास्त्री ने डा. रघुवीर वेदालंकार के गले में मोतियों का हार पहनाया। उन्हें शाल भी ओढ़ाया गया और अभिनन्दन पत्र भेंट किया गया।
अपने उद्गार व्यक्त करते हुए डा. रघुवीर जी ने कहा कि गुरुकुल का परिवार ही हमारा परिवार होता है। उन्होंने व्यंग में कहा कि डा. धनन्जय ने उनके साथ छल किया है उसी का परिणाम यह अभिनन्दन का आयोजन है। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पूर्व डा. धनंजय ने मुझसे मेरा परिचय मांगा था, तब मैं इनकी योजना को समझ नहीं सका था। उनकी उस योजना का मूर्त रूप मुझे आज देखने को मिला। पं. राजवीर शास्त्री जी जैसे तपस्वी विद्वान की स्मृति में अभिन्नदन किये जाने से मुझे प्रसन्नता है। पं. राजवीर शास्त्री जी ने मुझे पढ़ाया भी है। डा. रघुवीर जी ने कहा यह गुरुकुल पं. राजवीर शास्त्री जी की स्मृतियों को संजोए हुए है। आचार्य रघुवीर जी ने यह भी कहा कि इस गुरुकुल से आरम्भ से ही मेरी आत्मीयता बन गई है। डा. रवीन्द्र आर्य का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि 16 से 25 वर्ष तक युवावस्था हाती है। मैंने इन्हें पढ़ाया भी है। मैं भी इन्हें सम्मानित करता हूं। यह कहकर उन्होंने अपनी शाल डा. रवीन्द्र आर्य जी को ओढ़ा दी।
डा. रघुवीर वेदालंकार जी को अभिनन्दन के रूप में जो नगद धनराशि दी गई थी वह भी उन्होंने गुरुकुल पौंधा द्वारा संचालित एक अन्य न्यास के कार्यों के लिए भेंट कर दी। उन्होंने यह भी कहा कि मुझे इस बात की भी प्रसन्नता है कि यह गुरुकुल 16 वर्ष का युवा गुरुकुल है।
-मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, डा. रघुवीर वेदालंकार जी के गुरु-प्रेम व दानशीलता प्रशंसनीय है. अति सुंदर आलेख के लिए आभार.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी।
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी।