ग़ज़ल : तूफानों का हद से गुजरना जारी है
तूफानों का हद से गुजरना जारी है ।
छत से तेरे चाँद निकलना जारी है ।।
ज्वार समन्दर में आया बेमौसम है।
नदियों का बेख़ौफ़ मचलना जारी है ।।
मुद्दत गुजरी होश गवां कर बैठा हूँ ।
शायद मेरा पाँव बहकना जारी है ।।
लुका छिपी में इश्क दफन न हो जाए ।
उससे मिलकर रोज बिछड़ना जारी है।।
उसे खबर पुख्ता है मेरे आने की ।
रह रह कर यूँ जुल्फ संवरना जारी है ।।
खुशबू लातीं तेज हवाएँ गुलशन से ।
कलियों में कुछ रंग बिखरना जारी है ।।
चली गयी परदेश बहुत खामोशी से ।
खत में लिखा बयान तड़पना जारी है ।।
आँखों से तस्दीक मुहब्बत महफ़िल में ।
किसी जुबाँ से बात मुकरना जारी है ।।
दिल के पन्ने खोल खोल के मत पढ़ना ।
अरमानों से दर्द पिघलना जारी है ।।
तेरी गली से वो पगला फिर गुजर गया ।
उसका सुबहो शाम टहलना जारी है ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी