गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : तूफानों का हद से गुजरना जारी है

तूफानों का हद से गुजरना जारी है ।aa
छत से तेरे चाँद निकलना जारी है ।।

ज्वार समन्दर में आया बेमौसम है।
नदियों का बेख़ौफ़ मचलना जारी है ।।

मुद्दत गुजरी होश गवां कर बैठा हूँ ।
शायद मेरा पाँव बहकना जारी है ।।

लुका छिपी में इश्क दफन न हो जाए ।
उससे मिलकर रोज बिछड़ना जारी है।।

उसे खबर पुख्ता है मेरे आने की ।
रह रह कर यूँ जुल्फ संवरना जारी है ।।

खुशबू लातीं तेज हवाएँ गुलशन से ।
कलियों में कुछ रंग बिखरना जारी है ।।

चली गयी परदेश बहुत खामोशी से ।
खत में लिखा बयान तड़पना जारी है ।।

आँखों से तस्दीक मुहब्बत महफ़िल में ।
किसी जुबाँ से बात मुकरना जारी है ।।

दिल के पन्ने खोल खोल के मत पढ़ना ।
अरमानों से दर्द पिघलना जारी है ।।

तेरी गली से वो पगला फिर गुजर गया ।
उसका सुबहो शाम टहलना जारी है ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com