गीत/नवगीत

यह मंजर कैसा आया है।

मौसम है गर्मी का लू-तपन, ने कहर ढाया है
जीव-जगत त्रस्त है,यह मंजर कैसा आया है।

पेड़-पौधे झूलस रहें है,वन-उपवन थर्राया है
फुल-कली सब सूख गये, हाहाकार छाया है।

रौद़ रूप  भीषण गर्मी, लेकर सुरज आया है
लाल  अगन  बरस रहा, सबमे डर समाया है।

चौंक-चौराहे और सड़कों में, सन्नाटा छाया है
घर मे सब दुबक गये,कोई नजर नही आया है।

यहाँ-वहाँ हर कोई छाया को आसरा बनाया है
छाया भी नदारद हुई, इसमें भी डर समाया है।

सुकून भरी छाया हेतु हर कोई आँखे गड़ाया है
एक पेड़ कौन लगाए क्या कोई जतन उठाया है?

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578

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