परमात्मा महान यशवाला है: स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती
ओ३म्
श्रीमद् दयानन्द ज्योतिर्मठ आर्ष गुरुकुल पौंधा, देहरादून का तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव 3 जून 2016 को आरम्भ हुआ। इस दिन एक सत्यार्थ सम्मेलन का आयोजन किया जिसे स्वामी श्रद्धानन्द सहित अनेक विद्वानों ने सम्बोधित किया। यहां हम स्वामी श्रद्धानन्द जी के सम्मेलन में प्रस्तुत विचारों को दे रहे हैं। आशा कि पाठक इन्हें पसन्द करेंगे।
सत्यार्थ सम्मेलन के संयोजक श्री अजित कुमार ने स्वामी श्रद्धानन्द जी को प्रवचन के लिए आमंत्रित कर उन्हें ‘ईश्वर का सत्यार्थ स्वरूप’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करने का निवेदन किया। स्वामी श्रद्धानन्द ने अपना व्याख्यान आरम्भ करते हुए कहा कि यहां बैठे हुए हम सब व्यक्ति एक ही विचार को मानते हैं जिसे वैदिक विचार कहते हैं। परमात्मा के सत्यस्वरुप का दर्शन कराने के लिए सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ की रचना महर्षि दयानन्द ने की है। सत्यार्थप्रकाश में ऋषि दयानन्द ने ईश्वर के अनेक नामों से हमारा परिचय कराया है। पृथिवी, जल, वायु आदि अनेक पदार्थों को भी ऋषि ने संस्कृत व्याकरण के आधार पर परमात्मा के नाम सिद्ध किया है। उन्होंने कहा कि लोगों ने अलग अलग नामों से अलग-अलग ईश्वर की कल्पना कर ली। आज भी लोग अनेक ईश्वर को मानते हैं। ऋषि दयानन्द ने महाभारत के बाद वेदों के आधार पर एक ईश्वर का सिद्धान्त दिया। पौराणिक लोगों ने ईश्वर के अवतार की कल्पना कर समाज में अनेक भ्रान्तियां फैलाई हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर के अवतार का विचार वेद और महर्षि दयानन्द के सिद्धान्तों के विरुद्ध है। अवतारवाद के आधार पर प्रतिमा की पूजा समाज में चल पड़ी। वैदिक दर्शन के अनुसार परमात्मा की प्रतिमा न होने से प्रतिमा पूजन करना अनुचित है। स्वामीजी ने कहा कि यजुर्वेद प्रतिमा पूजन का खण्डन करता है।
वेद कहता है कि वह परमात्मा महान यशवाला है। उसी परमात्मा की उपासना का विधान वेद करते हैं। स्वामीजी ने कहा कि जो मनुष्य ईश्वर के यथार्थ स्वरूप से भिन्न अन्य किसी की उपासना करता है वह दुःखसागर में डूबा रहता है। आर्यसमाज के दूसरे नियम पर विचार करने से ईश्वर विषयक भ्रान्तियों का निराकरण हो सकता है। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने कहा कि ईश्वर निर्दोष एवं निर्विकार है। सारा ब्रह्माण्ड परमात्मा के गर्भ में है। आलोचनाओं का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि उदर में मल-मूत्र होने पर भी मनुष्य को दुर्गन्ध नहीं आती। इसी प्रकार से समस्त संसार परमात्मा के गर्भ में होने के कारण परमात्मा को मल मूत्र की दुर्गन्ध नहीं आती। ईश्वर जगत में व्यापक है, इसीलिए परमात्मा का नाम विष्णु है।
स्वामी श्रद्धानन्द ने कहा कि मूर्ति पूजा जैन मत से चली है। जैनियों ने यह मूर्तिपूजा वाममार्गियों से ली है। परमात्मा कण-कण में व्यापक है। परमात्मा अग्नि व आकाश सहित संसार के सभी पदार्थों में व्यापक है। प्रश्न हो सकता है कि यह सभी एक साथ कैसे रहते हैं? स्वामी जी ने कहा कि पत्थर जल, अग्नि, पृथिवी व आकाश से मिलकर बना है। यह सभी पत्थर में रहते हैं। उन्होंने कहा कि जो सूक्ष्म होता है वह अपने से कुछ स्थूल में प्रवेश कर सकता है। ईश्वर सर्वातिसूक्ष्म होने से सब पदार्थों के अन्दर रह सकता है। ईश्वर सर्वव्यापक और सर्वान्तर्यामी है। गीता से भी इसकी पुष्टि होती है। ‘ईश्वर सर्वभूतानां हृद्येषु अर्जुन तिष्ठति।’ स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा सच्चिदानन्द स्वरूप है। उपनिषदें कहती हैं कि परमात्मा एक है। योगदर्शन के अनुसार क्लेश, कर्म व कर्म के फलो से रहित पुरुष विशेष ईश्वर है। ऐसे परमात्मा की हम सबको स्तुति करनी चाहिये। गुणवान में गुण और दोष में दोष देखना स्तुति कहलाती है। परमात्मा के गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार स्वयं को बनाना व वेदाज्ञा का पालन करना ईश्वर की स्तुति है।
स्वामी श्रद्धानन्द जी ने कहा कि हम सबको परमात्मा से प्रेम करना चाहिये। परमात्मा हमारे मित्र हैं। परमात्मा प्रकाशस्वरूप और ज्ञान स्वरुप है। उसकी स्तुति करने से हमारे जीवन से अन्धकार दूर होकर सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा का एक नाम अतिथि भी है। इस नाम से यह ज्ञात होता है कि ईश्वर को समय सीमा में नहीं बांधा जा सकता। इसी के साथ स्वामी जी ने अपने प्रवचन को विराम दिया। स्वामी श्रद्धानन्द जी के बाद आर्य भजनीक श्री मामचन्द पथिक जी ने एक भजन प्रस्तुत जिसके कुछ बोल थे ‘सूर्य की लाली में और चन्द्र की उजियाली में बोलो वो कौन है, बोलो वो कौन है? जो हरियाली में, वृक्षों की डाली डाली में है, बोलो वो कौन है, बोलो वो कौन है?’ इस भजन को श्रोताओं में बहुत पसन्द किया। इति।
-मनमोहन कुमार आर्य
बहुत सुंदर सर जी
नमस्ते। लेख पसंद करने एवं प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर. परमात्मा का एक नाम अतिथि भी है. इस नाम से यह ज्ञात होता है कि ईश्वर को समय सीमा में नहीं बांधा जा सकता.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद बहिन जी। अतिथि उस परोपकारी विद्वान को कहते हैं कि जो आने की तिथि बताये बिना हमारे घर आता है। ईश्वर भी हमें यह बताता नहीं है कि वह मेरे साथ मेरी आत्मा में विराजमान है। अतः तिथि रहित सदा सदा से हमारा साथी, उपकारक और मित्र होने से वह हमारा अतिथि है। हमें उसका सत्कार उसकी स्तुति, प्रार्थना वा ध्यान करके करना चाहिए। सूंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। सादर।