लघु व्यंग्य : तलाश
गोवंश उदास हो तलाश कर रहा है असहिष्णुता का ढिंढोरा पीटनेवाले उन महानुभावों को जो पिछले दिनों कुछ अधिक ही सक्रिय रहे। वे खूब चीखे, चिल्लाए और विधवा विलाप कर अपनी छातियाँ पीटते हुए असहिष्णुता मन्त्र का जाप करते रहे। उन्होंने अपना सारा दमखम लगा दिया सच को झूठ और झूठ को सच साबित करने में। अन्याय से मुँह फेरकर न्याय का नारा लगाते हुए ही उनके दिन और रात बीते। और आज जब सच सामने आया तो उन न्याय प्रेमियों में से कोई चूँ भी नहीं कर रहा है। सभी के सभी अपने-अपने बिलों में घुसकर मौन व्रत धारण किए हुए हैं। असहिष्णुता भी अपने प्रेमियों की तलाश में काफी दिनों से परेशान है। सहिष्णुता असहिष्णुता को ढाँढस बँधा रही है कि वो उदासी को त्याग दे क्योंकि वक़्त आने पर वे सभी महानुभाव अपने-अपने बिलों से बाहर निकलेंगे। तब फिर से असहिष्णुता की पूछ होगी। और उस समय सहिष्णुता को मृत घोषित कर उसको फिर से जीवित करने की माँग उठाने हेतु किसी सभा अथवा मार्च का आयोजन किया जाएगा। फिर उस सभा अथवा मार्च की सफलता के उपलक्ष में एक शानदार भोज का आयोजन किया जाएगा, जहाँ थालियों में गोवंश छिन्न-छिन्न रूप में मेजबानों की सेवा में ससम्मान प्रस्तुत किया जाएगा। यह देख असहिष्णुता अपनी तलाश सफल होने पर खिलखिलाएगी और सहिष्णुता बेबस हो गोवंश के गले से लगकर आँसू बहाएगी।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह