महादानी कल्याण सुंदरम
दान की महिमा का जितना भी बखान किया जाए, कम है. अथर्ववेद में भी इसका गान हुआ है, ‘सौ हाथों से इकट्ठा करो और हज़ारों हाथों से बांटो.’ आधुनिक संत विनोबा भावे ने ‘दान’ को परिग्रह का प्रायश्चित कहा है. सभी धर्मों और आदर्श आचरण के निर्देशों में कहा गया है, कि अपनी कमाई का कम से कम दसवां हिस्सा तो दान करना ही चाहिए. हमारे देश में अनेक ऐसे महादानी हुए हैं, जिन्होंने निःस्वार्थ भाव से दान किया. आइए एक महादानी के बारे में जानें.
तमिलनाडु के कल्याण सुंदरम लेखक और लाइब्रेरियन थे. नौकरी लगते ही पहला वेतन ‘पालम’ समाज सेवा संस्था को दिया, तो यह क्रम आजीवन चला. पारिवारिक संपत्ति से मिला अपना दाय, सेवानिवृत्ति के बाद प्राप्त हुआ धन सब दे दिया. अविवाहित रहे और अपना भरण-पोषण शाम को लॉन्ड्री और होटल में काम करके किया. कल्याण सुंदरम को उनकी इस निःस्वार्थ समाज सेवा के लिए अमेरिका ने उन्हें ‘मैन ऑफ द मिलेनियम’ पुरस्कार से भी नवाज़ा. यह पुरस्कार तीस करोड़ का था. यह राशि भी समाज सेवा के महायज्ञ में दे दी गई.
ज्ञान देना और अच्छे लोगो की कीर्ति को बढ़ाना समाज और राष्ट्र की अनूठी सेवा है, आपको साधुवाद.
हम मन की तंगहाली के दौर में हैं, भौतिक अतिक्रमण को हटा कर मन दर्पण को दर्शनीय बनाने का प्रयास हम सबको करना चाहिए, जो कर रहे हैं उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए, लीला तिवानी को बहुत बड़ा सलाम – डॉ बजरंग सोनी 9829083208 [email protected]
लीला बहन , कलिआन्न सुन्दरम जी को कोटि कोटि सलाम . जो ऐसे महान दानी होते हैं ,वोह जानते होते हैं कि उन का दान कहाँ खर्च होगा . ऐसे लोग सदी में एक होते हैं और इन को ही मैं महात्मा कहूँगा . छोटे से लेख में आप बहुत कुछ कह देते है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह आपकी पारखी और गुणग्राही नज़र का कमाल है. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
लीला बहन , कलिआन्न सुन्दरम जी को कोटि कोटि सलाम . जो ऐसे महान दानी होते हैं ,वोह जानते होते हैं कि उन का दान कहाँ खर्च होगा . ऐसे लोग सदी में एक होते हैं और इन को ही मैं महात्मा कहूँगा . छोटे से लेख में आप बहुत कुछ कह देते है .
बहुत सुंदर एवं प्रेरणादायक रचना एवं प्रसंग। बहुत से लोग दान करते हैं परन्तु उन्हें पात्र व कुपात्र का ज्ञान नहीं होता। दान अवश्य करना चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह सुपात्रों को ही दिया जाए। वेद और मनुस्मृति में धन की तुलना में ज्ञान के दान अर्थात वेदों के ज्ञान को सर्वोत्तम व महनीय बताया गया है। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर. आपने दान के बारे में बहुत सुंदर बातें बताईं.