ग़ज़ल
यूँ पानी में जरा चाँद उतरने तो दीजिए
बाहों में इसका अक्श भरने तो दीजिए।
रेशमी जुल्फों मे सबनम है ठहरी ठहरी
जरा चाँदनी तन पर पिघलने तो दीजिए।
हल्की सी मुस्कुराहट लब पे जो खिली है
शर्म ओ हया का घूँघट संवरने तो दीजिए।
तेरे इन्तजार में अजी ये वक्त रुक गया है
अब आ जाइए ये वक्त गुजरने तो दीजिए ।
ग़ज़ल ग़ज़ल नहीँ जो दिलमें उतर न जाए
अहसास मेंरे दिलके बिखरने तो दीजिए।
कोई झोंका हवा का आया इस तरफ़ जानिब
हवा के साथ मुझको अब जरा चलने तो दीजिए
— पावनी दीक्षित ‘जानिब’