नज्म
तुम्हें भूलने की नाकाम कोशिश में
मर रही हूँ तिल-तिल करके
मैं नही हो पाऊँगी कामयाब कभी
देख चुकी हर कोशिश करके
मैं भूलते तो नही पल भर के लिए भी
हां याद आते हो कुछ और भी ज्यादा
हर यत्न करती हूँ तुम्हें भूलने की लेकिन
पल में टूट जाता है तुम्हें भूलने का इरादा
सांसें तो चलती हैं तुम बिन भी लेकिन
जीना तुम बिन गुनाह सा लगता है
दिल भी धड़कता है तुम बिन लेकिन
जिस्म इक पुतला बेज़ान सा लगता है
क्या समझ पावोगे कभी तुम हाल मेरा?
कैसे जीती हूँ मैं पल भर भी बिना तुम्हारे
तुम देख भी ना पावोगे कभी मेरे आंसू
तुम्हें खबर ही नही मेरा कोई नही सिवा तुम्हारे।
— सुमन शर्मा