“दोहा”
कैसे कहूँ महल सुखी, दिग में ख़ुशी न कोय
बहुतायती अधीर है, रोटी मिले न भोय।।-1
मुट्ठी भरते लालची, अपराधी चहुँ ओर
कोना कोना छानते, लेते मणी बिटोर।।-२
दूधों वाली गाय को, करते सभी दुलार
दूध नहीं दाना नहीं, चला करे तलवार।।-3
निर्मम हत्या बहुबली, कला करें सरकार
मथुरा काशी कोशला, कैसे हैं लाचार।।-4
पूत कपूत को तौलते, लिए तराजू चोर
हीरा हिंसक एक सा, बँसवारी में शोर।।-५
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी