कविता

“दोहा”

 

कैसे कहूँ महल सुखी, दिग में ख़ुशी न कोय
बहुतायती अधीर है, रोटी मिले न भोय।।-1

मुट्ठी भरते लालची, अपराधी चहुँ ओर
कोना कोना छानते, लेते मणी बिटोर।।-२

दूधों वाली गाय को, करते सभी दुलार
दूध नहीं दाना नहीं, चला करे तलवार।।-3

निर्मम हत्या बहुबली, कला करें सरकार
मथुरा काशी कोशला, कैसे हैं लाचार।।-4

पूत कपूत को तौलते, लिए तराजू चोर
हीरा हिंसक एक सा, बँसवारी में शोर।।-५

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ