ब्लॉग/परिचर्चा

अंत्याक्षरी से एकोमोडेशन तक

दिनेश बचपन से ही प्रतिभाशाली छात्र माना जाता था. पढ़ाई के साथ-साथ अन्य सांस्कृतिक व खेल-गतिविधियों में भी उसकी प्रतिभा का अक्स झलकता था. पढ़ाई में प्रतिभा के साथ-साथ परिश्रम का अनुपम मेल होने के कारण उसे आईआईटी दिल्ली में सम्मानजनक रैंक के साथ इंजीनियरिंग में एडमीशन मिल गया. आईआईटी के रूल्स के हिसाब से दिनेश को एडमीशन तो मिल गया पर, घर चार किलोमीटर के दायरे में आने के कारण कैम्पस में एकोमोडेशन नहीं मिल पाया. वहां कैम्पस में एकोमोडेशन मिलने वाले छात्रों को खाने-पीने की सुविधा के साथ-साथ चौबीस घंटे लाइब्रेरी-कम्प्यूटर रूम-फोटोकॉपी व कैंटीन की सुविधाएं भी उपलब्ध हो पाती थीं. इसका अर्थ था पढ़ाई और केवल पढ़ाई का माहौल. वह एकोमोडेशन न मिल पाने से तनिक निराश तो था, लेकिन, उसे पूरा विश्वास था कि जल्दी ही उसे एकोमोडेशन अवश्य मिल जाएगा. जल्दी ही उसे अवसर भी मिल गया. यहां सांस्कृतिक गतिविधियों में महारत ने उसका पूरा साथ दिया.

 
प्रतिभा, सहयोग की भावना व बोलचाल में शालीनता के कारण शीघ्र ही उसके कई मित्र बन गए. उन मित्रों में ज्वालामुखी हाउस का हैड भी सम्मिलित था. सत्र शुरु होते ही अनेक प्रतियोगिताओं की अनाउंसमेंट हुई. सबसे पहले अंत्याक्षरी की प्रतियोगिता हुई. ज्वालामुखी हाउस के हैड को अंत्याक्षरी की प्रतियोगिता के लिए कोई छात्र नहीं मिल रहा था. बात-बात पर तत्संबन्धी चुट्कुले सुनाने वाले दिनेश से उसने पूछा कि, “क्या वह अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में कुछ कर सकता है?” उत्तर आत्मविश्वासपूर्वक हां में मिलने पर उसने फिर पूछा कि, “क्या वह ज्वालामुखी हाउस की तरफ से अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में भाग लेगा?” उसका उत्तर भी हां में मिलने पर ज्वालामुखी हाउस के हैड का चेहरा खिल गया. अगले दिन “अंत्याक्षरी प्रतियोगिता” हुई. अपनी टीम की तरफ से दिनेश ने किसी और छात्र को कुछ बोलने का अवसर ही नहीं दिया और थोड़ी देर में ही इंटर हाउस प्रतियोगिता की ट्रॉफी ज्वालामुखी हाउस की झोली में आ गई. सबने उसको हाथोंहाथ लिया.

 

ज्वालामुखी हाउस के हैड ने उससे पूछा कि, वह और क्या-क्या जानता है? उसने बताया कि उसने स्कूल टाईम में नाटक, कव्वाली, गीत-संगीत में भाग लिया. उसे बांसुरी-गिटार-कैसियो बजाना आता है. बस फिर क्या था, हाउस के हैड ने उसे अगले दिन होने वाले पाश्चात्य संगीत प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर दिया. दिनेश ने सारी रात अभ्यास करके अपने इलैक्ट्रिक गिटार पर पाश्चात्य संगीत प्रतियोगिता जीतने की पूरी तैयारी कर ली. अगले दिन अत्यंत विश्वासपूर्वक उसने पाश्चात्य संगीत प्रतियोगिता में भाग लिया और उसकी ट्रॉफी भी ज्वालामुखी हाउस के नाम कर ली. अब ज्वालामुखी हाउस के छात्र उसे कहां छोड़ने वाले थे. उसी समय उससे कैम्पस में एकोमोडेशन के लिए ऐप्लीकेशन लिखवाई, हाउस-हैड खुद उसे डीन के पास ले गया और उसी समय उनकी अनुमति लेकर दिनेश को कैम्पस में एकोमोडेशन मिलने की बधाई दी. दिनेश उसी समय घर जाकर अपना कुछ सामान ले आया और कैम्पस के एकोमोडेशन में एकोमोडेट हो गया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

6 thoughts on “अंत्याक्षरी से एकोमोडेशन तक

  • मनमोहन कुमार आर्य

    अच्छी प्रेरणादायक एवं शिक्षाप्रद कथा। विद्या का छेत्र बहुत व्यापक है। अध्यात्म विद्या भी विद्या का सबसे महत्वपूर्ण व प्रमुख अंग है। अंग्रेजी वा ईसाइयत के प्रभाव से हमने ईश्वर व आत्मज्ञान की घोर उपेक्षा की है। आज अधिक से अधिक पैसा कमाने की कला व निपुणता को ही विद्या का नाम दे दिया गया है। ऐसा मुझे लगता है। सादर।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक टिप्पणी के लिए आभार.

  • शिप्रा खरे

    दिनेश के मन ने हिम्मत ना हारी…और हौसलों ने उसे अपनी जगह दिलायी… बहुत सुंदर लिखा आपने लीला दी

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी शिप्रा जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , दिनेश का अन्ताक्षरी में जित जाना तो एक शुरुआत थी ,इस अन्ताक्षरी से उस की सफलताओं के दरवाज़े खुल गए .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने एकदम सही बात कही है, यह तो आग़ाज़ था, अंजाम भी अच्छा ही हुआ. अति सुंदर व सार्थक टिप्पणी के लिए आभार.

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