कविता

मंझधार

दो कश्तियों पे होके सवार
कहाँ हो पाया कोई सागर से पार
तुझको ये एहसास गर हो जाये
सही गलत कुछ तो समझ आये
कभी तो कोई लहर आयेगी
नैया और माँझी से टकरायेगी
उफनेगा ज्वारभाटे का तेज़ और
तेरी खोखली जीत बन जायेगी हार…
*
कि पार जाने के लिये सही नाव का चुनाव आवश्यक होता है …!!
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शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - shipradkhare@gmail.com

5 thoughts on “मंझधार

  • रीना मौर्य "मुस्कान"

    waah bahut -bahut sundar

    • शिप्रा खरे

      बहुत बहुत धन्यवाद रीना जी..आपने समय निकाल कर कविता पढी 🙂

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी शिप्रा जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. पार जाने के लिये एक और सही नाव का चुनाव आवश्यक होता है. अति सुंदर व सार्थक कविता के लिए आभार.

    • शिप्रा खरे

      लीला दी …आप अपनी स्नेह यूँ ही बरसाइये और साथ ही मार्गदर्शन भी दीजिये अपनी इस अनुजा को 🙂

      • लीला तिवानी

        हमारे पास स्नेह-ही-स्नेह है,
        मार्गदर्शन का जिम्मा परमपिता का है,
        वही हमारा भी मार्गदर्शक है.

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