मेरी कहानी 138
मेरे दोस्तों में चौधरी साहब का नाम भी हमेशा मेरे दिल में रहेगा ,वह एक मुसलमान दोस्त थे और पंजाबी थे। बहुत ही शरीफ थे और कभी कभी मेरे घर आया करते थे। जब भी मिलते, बस पहले बोलते,” भमरा साहब ठीक हो ?”, इस के बाद ही कोई बात करते। बहुत मिहनती थे, बहुत ओवरटाइम करते थे और शायद सब से ज़्यादा पैसे कमाते थे। हमारे नज़दीक ही एक जामय मस्जिद में आया करते थे। तकरीबन दस बारह मुसलमान लड़के हमारे साथ काम करते थे और एक दो तुअसबि लोगों को छोड़ सभी ऐसे थे जैसे हम सब एक गाँव में रहते थे। यह सभी बीअर पीते थे और इन का सब इंडियन से इतना प्रेम था कि किसी भी मुसीबत के वक्त दोस्तों की मदद करते थे। खैर मुहमद तो इतना अच्छा था कि वह कभी कभी गुर्दुआरे भी चला जाता था और लंगर में बैठ कर पर्शादा भी छक लेता था। बहुत ही सीधा इंसान था। धर्म के मामले में तो वह अक्सर एक बात किया करता था कि एक शख्स एक बृक्ष के नीचे अपने घुटनों पर सर रखके उदास बैठा था तो एक बज़ुर्ग उसे उदास बैठा देख नज़दीक आया और उस की उदासी का कारण पुछा तो वह शख्स बोलने लगा, ” मैं मंदिर मस्जिद गुर्दुआरे में बहुत दफा जा चुक्का हूँ लेकिन मुझे कहीं से भी मन का सकूं नहीं मिला, उदास हूँ कि कहाँ जाऊं”, तो बजुरग बोला, इन सभी धर्म आस्थानों की ओर पीठ करके दूर चला जा, बस यही धर्म अच्छा है। खैर मुहमद ने बहुत पापड़ वेले लेकिन उस को घाटा ही पड़ा। रिटायर होने से कुछ महीने पहले वह इस दुन्याँ को छोड़ गया।
चौधरी साहब का सारा परिवार हमारे पंजाबीओं के बहुत नज़दीक था। उस के दो बेटे और एक बेटी थी। पाकिस्तान में उस की अपनी पुरखों की जमीन थी और उस ने बहुत सख्त मिहनत करके पाकिस्तान में बढ़िया कोठी बनाई थी। मुझे अक्सर कहता, ” भमरा साहब यह गोग्लों की बारिश हमेशा नहीं होती, ओवर टाइम लगा के खूब पैसे बनाओ “,मैं हंस पड़ता। उस का घर पार्क लेंन गैरेज के नज़दीक था लेकिन बाद में उसे हमारे नज़दीक ही काफी बड़ा मकान मिल गया था जो उसे बहुत सस्ता मिल गया, लेकिन इस घर पे रिपेयर बहुत होने वाली थी। धीरे धीरे उस को एक साल लग गया घर रिपेयर करते करते और फिर जब बन गया तो सारा परिवार इस में रहने लगा था। यह घर पार्क के बिलकुल पास था। इस पार्क में मैं वाक् करने के लिए जाया करता था और हमारा मिलन इस पार्क में होता ही रहता था। इकठे हम पार्क के गिर्द चक्क्र लगाते और बातें करते रहते। भोजन के मामले में चौधरी साहब बहुत स्ट्रिक्ट थे, न तो वे कोई ड्रिंक पीते थे और न ही कभी कैंटीन से कुछ ले के खाते थे, हमेशा घर से ही लाते थे। फ्रूट सलाद बहुत खाते थे लेकिन इतना करते हुए भी उन को बाऊल कैंसर की शिकायत हो गई। उन का एमरजैंसी ऑपरेशन किया गया और कीमोथैरपी शुरू हो गई और ठीक होने लगा। मैं उस को मिलने गया और उस की बीवी हमारे पास ही बैठ गई और बहुत बातें हुईं। क्योंकि वह काम पे नहीं जाता था, इस लिए उस ने कुछ क्लेम फ़ार्म भरने थे जो हम दोनों ने भरे। दो हफ्ते बाद उस का टेलीफोन आया कि उसे पैसे मिलने शुरू हो गए थे। कीमोथेरैपी के हर सैशन के बाद उस की हालत बहुत बुरी होती थी और उस को देख कर तरस आता था। कुछ महीनों बाद वह बिलकुल ठीक हो गया और काम पे आने लगा।
अब वे खुश खुश रहने लगा था। नए घर का गार्डन बहुत बुरा था और वह रोज थोड़ा थोड़ा इस में काम करता। एक दिन पता चला कि गार्डन में फावड़ा चलाते चलाते उस के फिर दर्द होने लगी थी और हसपताल में भर्ती होना पड़ा। दो तीन हफ्ते बाद मुझे पता चला कि चौधरी साहब की हालत बहुत बुरी हो गई थी। मैं हसपताल में जा पहुंचा। जब मैं वार्ड में गया तो वहां बहुत रिश्तेदार, उस की बीवी और बच्चे बैठे थे। चौधरी साहब मेरी तरफ देख कर मुस्कराए और मैं बैड के पास पडी कुर्सी पर मैं बैठ गया। मरीज़ को सभी हौसला देते और मैंने भी कुछ शब्द बोले लेकिन मुझे उस की बीवी का वह चेहरा अभी तक याद है, जब उस ने मुझे कहा था भैया ,” प्लीज़ अपने गुरु से कहिये मेरे खवंद को ठीक कर दे “, उस की यह बेबसी मुझे कभी नहीं भूली। इस के कुछ हफ्ते बाद ही चौधरी साहब इस दुनीआ से चले गए। जिस दिन चौधरी साहब का फ्यूनरल था, मैं और मेरा दोस्त मोहन लाल शर्मा उस के घर गए। चौधरी साहब के रिश्तेदार तो थे ही लेकिन हमारे पंजाबी लोग भी बहुत थे। जब चौधरी साहब का शरीर घर के भीतर लाया गया तो सभी लोग एक एक करके उस के आख़री दर्शन करने के लिए भीतर आते और दर्शन करके दूसरे दरवाज़े से बाहर आ जाते। ऐसी घड़ी में मेरे साथ एक अजीब बात हुई, चौधरी साहब के दर्शन करने की गर्ज़ से मैंने बॉक्स को हाथ लगाने ही वाला था कि एक औरत झट्ट से बोल पडी,” हाथ ना लगाना ,हाथ ना लगाना “, कुछ हैरान हुआ मैं बाहर आ गया और एक दोस्त को यह बात बताई तो वह कहने लगा,” कुछ लोग हैं जो सोचते हैं कि आख़री समय किसी काफर का हाथ नहीं लगना चाहिए “, यह सुन कर मुझे बहुत दुःख हुआ और मैं और शर्मा उसी वक्त वापस आ गए ताकि कोई और ऐसी गलती ना हो जाए। कुछ भी हो चौधरी साहब के साथ बिठाये वोह पल कैसे भूल सकता हूँ .
मोहन लाल शर्मा भी एक बहुत ही शरीफ इंसान है। एक बात मेरे दिमाग में आई है कि हर शख्स अपने जैसे सुभा के लोगों से दोस्ती करके ही अच्छा महसूस करता है और शर्मा तो ऐसा है कि किसी को कोई बुरी बात कह ही नहीं सकता। एक ब्राह्मण परिवार होने के नाते उन के घर शुद्ध देसी भोजन बनता है, जो बहुत ही अच्छा होता है और उस के घर जा के मैं बहुत अच्छा महसूस करता था। अब पिछले कुछ साल से उन के घर जा नहीं सका हूँ और वह भी नहीं आ सकता क्योंकि उस को पार्किंसन रोग है लेकिन हम एक दूसरे को कभी कभी टेलीफोन कर लेते हैं। बोल वह भी अच्छी तरह नहीं सकता और मैं तो उस से भी बुरा हूँ लेकिन वह बात कि गूंगे की माँ ही गूंगे को समझे, हम एक दूसरे को समझ लेते हैं। शरमे के चचेरे भाई कौशल भी हमारे साथ ही काम किया करते थे और उन की सिहत भी हम सब से अच्छी थी, कौशल बिलकुल शाकाहारी था और हिकमत का भी उस को काफी गियान था और उस ने सत्संग राधा सुआमी बियास से नाम लिया हुआ था और उस का विशवास इस कदर सच्चा था कि जब उस को कैंसर रोग हुआ तो उस ने कोई भी दुआई लेने से इंकार कर दिया, उस का विशवास था कि गुरु जी उस की रक्षा करेंगे और इसी लिए वह बियास आ कर रहने लगा था और वहां ही उस ने आख़री सांस लिए। कौन जाने अगर वह इंगलैंड में रह कर ही इलाज करवाता रहता तो शायद आज ज़िंदा होता लेकिन अब तो यह सब सोचने की बातें ही रह गईं। कौशल जब भी बात करता, दुसरे को भगत कह कर बुलाता था, भगत उस का तकिया कलाम ही बन गया था और सभी उसे हंस कर भगत जी कह कर बुलाते थे।
शरमे की ज़िंदगी में भी बहुत कठनाइयां आईं। दो बेटे और दो बेटियां पढ़ कर अच्छी नौकरियों पर लग गए थे और जब उस ने सारे बच्चों की शादियां कर दीं तो वह बहुत खुश था लेकिन एक बेटी के सुसराल वाले उस को बहुत दुःख देने लगे। दो साल बाद ही तलाक हो गया। उन दिनों शर्मा बहुत उदास रहता था। इस के तकरीबन दो साल बाद ही बेटी के लिए एक और लड़का देखा जो हायर स्टडीज़ के लिए इंडिया से आ कर इंगलैंड में पढ़ाई कर रहा था और इस लड़के की माँ इंडिया में कहीं प्रिंसीपल लगी हुई थी। रिश्ता हो गया, लड़के की माँ जो अपने आप को बहुत पौष समझती थी, इंडिया से आ गई थी और दोनों की शादी हो गई। अब शरमे के चेहरे पर फिर से रौनक आने लगी लेकिन यह लड़का बहुत दगाबाज़ निकला, यूं ही उसे शादी करके परमानेंट स्टे मिली, उस के तेवर ही बदल गए और वह लड़का तो और और लड़किओं से सम्बन्ध बनाने लगा। अश्लील फोटो उस की जेबों से मिलने लगी। अब फिर तलाक का काम शुरू हो गया और जल्दी ही तलाक हो गया। लड़की के पास अपने बहुत पैसे जमा थे, पहले तो यह लड़का पियार मुहबत की बातें करके लड़की से ले के इंडिया अपनी माँ को भेजता रहा और फिर जब तलाक हुआ तो क़ानून के मुताबिक शरमे की लड़की को अपने आधे पैसे लड़के को देने पड़े। अब शर्मा बहुत दुखी था। जल्दी ही एक और लड़के के बारे में पता चला जो इंडिया से ही आया हुआ था लेकिन पड़ा लिखा इतना नहीं था। यह लड़का बेछक पढ़ा लिखा इतना नहीं था लेकिन अच्छा बहुत था। शादी हो गई और उस के दो बेटे हो गए हैं और लड़की भी इस लड़के के साथ बहुत खुश है।
शरमे के दोनों बेटों के दो दो बेटियां थीं और अब भगवान् ने शरमे को एक पोते की दात बख्श दी है। जितना मानसिक बोझ शरमे ने एक बेटी के कारण सहा था, शायद उस का ही कारण होगा कि शरमे को पार्किंसन रोग ने दबा दिया। शर्मा मुझ से पहले रीटाएर हो गिया था और कुछ महीने बाद मैं भी रीटाएर हो गिया था। एक दूसरे के घर हम जाते रहते थे। उस के घर से कुछ दूर एक पार्क थी, जिस में हम जा कर फास्ट वॉक किया करते थे। शरमे की पत्नी अभी काम पे जाया करती थी। घर आ कर मैं और शर्मा चाय बनाते और मठाई खाते जो वह हमेशा खाया करता था। जब मुझे शरीरक प्रॉब्लम शुरू हुई तो मुझे कुछ महसूस नहीं होता था, शर्मा ही पहला शख्स था जब उस ने कहा था,” भमरा ! तेरी आवाज़ पहले वाली नहीं है “, इस से पहले मुझे कुछ भी पता नहीं था। मैं एक्सरसाइज बहुत करता था, शायद इस लिए ही बहुत देर तक मुझे पता ही नहीं चला। ऐसे ही एक दिन शरमे ने मुझे बताया कि उस के हाथ कांपने लगे थे और डाक्टर ने उसे हसपताल जाने को कहा था। फिर एक दिन उस ने बताया कि हस्पताल वालों ने पार्किंसन रोग बता दिया था और दुआई दे दी थी लेकिन शर्मा दुआई खाता नहीं था। इस के बाद जल्दी ही शर्मा और उस की पत्नी इंडिया को चले गए और किसी हकीम से देसी दुआई खाने लगा और साथ ही एक डाक्टर से भी दुआई लेने लगा। जब शर्मा वापस इंगलैंड आया तो उस की हालत पहले वाली नहीं थी। जब वह हसपताल के डाक्टर से मिलने गया तो उस ने इंडिया से लाइ दुआई डाक्टर को दिखाई तो उस ने देखते ही दवाई डस्ट बिन में फेंक दी और कहा कि या तो वह इंडिया से इलाज कराये या उस से।
इस के बाद शर्मा कुछ ठीक होने लगा लेकिन डाक्टर के बताये मुताबिक शर्मा कभी एक्सरसाइज नहीं करता था। मैंने शरमे को बहुत दफा समझाया था कि वह रोज़ाना एक्सरसाइज करे लेकिन वह कुछ भी करता नहीं था। उस की पत्नी जब भी हमारे घर आती शरमे की शिकायत करती कि वह कुछ भी नहीं करता था। धीरे धीरे मैं भी खराब होने लगा और शर्मा दो सोटीआं पकड़ कर चलने लगा और साथ ही उस का शरीर कमान जैसा होने लगा। उस का बेटा कभी कभी उसे मेरे घर ले आता और छोड़ जाता और हम सारा बैठे बैठे गप्प शपप करते रहते और शाम को उस का बेटा उसे ले जाता। दिनबदिन शरमे की सिहत ख़राब हो रही है। सोशल सर्वीसज़ वाले हफ्ते में दो दफा घर आ के उस की एक्सरसाइज करवाते हैं और सार दिन शरमे के पास बिताते हैं और उस की पत्नी को बाहर जाने का अवसर मिल जाता है क्योंकि उस को शरमे की देख भाल बहुत करनी पड़ती है, यहां की हकूमत डिसेबल लोगों का बहुत धियान रखती है और हर तरह की मदद करती है।
बहुत देर से शरमे को देख नहीं सका हूँ लेकिन उस का एक रिश्तेदार है जिस को पुरी साहब कह कर बुलाते हैं, उस की पत्नी कुलवंत के साथ लेडीज़ ग्रुप में जाती है और शरमे की खबर पहुंचाती रहती है कि अब शर्मा सोफे में ही बैठा रहता है और उस का शरीर बिलकुल कमान की तरह मुड़ गया है और दिन में दवाई कई दफा लेनी पड़ती है। सीढ़ियां चढ़ नहीं सकता और उस के लिए स्टेयर लिफ्ट लगा दी गई है। उस के सभी बच्चे शरमे का बहुत करते हैं और उस को उदास नहीं होने देते। मेरे विचार से यही स्वर्ग है।
चलता. . . . . . . . . . . . . . . .
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आज की कथा पढ़कर आपके मित्रो के बारे में ज्ञान हुआ। मनुष्य जीवन एक कर्म भूमि है। मनुष्य जैसा करता है उसी के अनुरुप उसका भविष्य बनता है। मैं पिछले दिनों अपने एक विद्वान मित्र श्री धर्मपाल शास्त्री जी की संगती में रहा। वह इस समय ८४ वर्ष के हैं। आर्यसमाज के विद्वान हैं। अनेको बार विदेशों में जाकर वेदो पर लेक्चर देते रहते हैं। २८ जून को पुनः कई देशों की यात्रा पर जा रहें। वह पूर्ण स्वस्थ हैं. मैंने उन पर एक लेख लिख कर इस महीने के आरम्भ में साइट पर अपलोड किया है। वह जवानी से ही स्वास्थ्य के नियमों का पूरा पालन कर रहें हैं। स्वास्थ्य भी उनका पूरा साथ दे रहा है। किश्त अच्छी लगी। धन्यवाद। सादर।
धन्यवाद ,मनमोहन भाई . कौशल ,मोहन लाल शर्मा और चौधरी साहब अपनी सिहत के प्रति इतने सावधान थे किः फालतू चीज़ खाते ही नहीं थे लेकिन फिर भी उन को कथ्नाइआन सहनी पडीं .मेरे दादा जी जब पूरण हुए तो १०५ साल के थे और मज़े की बात यह है किः उन्होंने जिंदगी में ऐस्प्रो तक नहीं ली और जब पूरण भी हुए तो धीरे धीरे चलते थे और एक रात को ठीक ठाक सोये और सुबह छोटा भाई जगाने गिया तो वोह जा चुक्के थे .
नमस्ते श्री गुरमेल सिंह जी। मुझे लगता है कर्म फल विद्या अत्यन्त रहस्यमय है। इसको ऋषि मुनि वा योगी तो कुछ कुछ जान सकते हैं, हम साधारण मनुष्य नहीं जान सकते। हमें तो ईश्वर को ही समर्पण surrender करना होगा। हम अच्छे से अच्छा कर्म करें, यही हमारे हाथ में हैं। हम ईश्वर से यह प्रार्थना भी कर सकते हैं कि हमें सत्य का मार्ग दिखा और उस पर हमें चला। सादर।
मनमोहन भाई , हम गृहस्थी इन बातों को समझ ही नहीं सकते .मैं तगड़ा था लेकिन मुझे work related समस्याओं के कारण बहुत से ऑपरेशन करवाने पड़े और आखर में इन ही कारणों के कारण अर्ली रीतायेर्मेंट लेनी पडी और अब मैं काम छोड़ कर बहुत खुश था,शारीरक समस्याएं भी ख़तम हो गई थीं और मैं दुनीआं के बहुत से देशों की यात्रा करना चाहता था लेकिन कुछ ही देशों का भ्रह्म्न्न किया लेकिन गोआ के अंजुना बीच पर जब हम पानी में मज़े कर रहे थे तो एक बहुत बड़ी पानी की लहर आई और मुझे पानी में घसीट कर ले गई . अभी जिंदगी के कुछ दिन बचे थे, एक और लहर आई और इस ने मुझे वापस बीच पर जोर से पटक दिया, मेरे बहुत चोटें आई लेकिन बच गिया .जब मैं वापस आया तो मुझे तेज़ बुखार चड़ने लगा ,आवाज़ बदलने लगी और मैं गिरने लगा .इस का जीकर भी कभी मैं अपनी कहानी में जरुर करूँगा .बस इस दिन के बाद मैं डिसेबल हो गिया लेकिन मैं हौसला हारने वालों में नहीं हूँ और मेरा निऔरोलोजिस्ट बहुत हैरान और खुश है क्योंकि उस के हिसाब से आठ नौ साल पहले ही मेरे डैथ संभव थी .
रही बात अछे कर्म करने की तो मेरी तो इस में यही परीबाषा है किः किसी का बुरा मत करूँ ,हेरा फेरी न करूँ ,खामखाह झूठ न बोलूं .फिर भी इंसान हूँ ,अनजाने में गल्तीआन हो ही जाती हैं और इन को मान लेने में कोई शर्म नहीं है .
स्वर्ग की अच्छी परिभाषा आपके लेखन में दिखी भाई …. काश सभी बुजुर्ग को ऐसी संतानें मिलती
धन्यवाद बहन जी , मेरे विचार से नरक स्वर्ग यहीं है और अगला जनम उस समय ही हो जाता है जब हमारे बच्चे हो जाते हैं . अगर बच्चे हमें खुश रखते हैं तो स्वर्ग यहाँ ही है ,अगर दुःख देते हैं तो यह नरक ही है . मरने के बाद हमारा शरीर मट्टी में मिल जाता है ,किसी रूह राह को मैं नहीं मानता क्योंकि हमारी रूह तो पहले ही हमारे बच्चों में परवेश कर जाती है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, चौधरी साहब का किस्सा सुनकर अच्छा लग रहा था, कि आखिरी बात कसैली आ गई. आपने शर्मा साहब के नर्क-स्वर्ग की बात बहुत सहज रूप से लिखी है. एक और अद्भुत एपीसोड के लिए आभार.
धन्यवाद लीला बहन .