स्वामी इन्द्रवेश विद्यापीठ, रोहतक में आयोजित स्वामी इन्द्रवेश स्मृति सम्मान एवं युवा संकल्प समारोह की हमारी यात्रा का वृतान्त
ओ३म्
-स्वामी इन्द्रवेश जी की दसवीं पुण्य तिथि के उपलक्ष्य में-
कुछ दिन पूर्व हमें स्वामी इन्द्रवेश विद्यापीठ (आश्रम), टिटौली-रोहतक से वहां 12 जून, 2016 को आयोजित विद्वत सम्मान समारोह में उपस्थित होने का आमंत्रण मिला था। इसके बाद आर्यजगत के प्रसिद्ध विद्वान, उपदेशक व हमारे पुराने परिचित मित्र श्री धर्मपाल शास्त्री जी का फोन आया और 12 जून को रोहतक चलने का सन्देश देकर आग्रह किया। इसके बाद गुरुकुल पौंधा देहरादून के वार्षिकोत्सव, 3 जून से 5 जून, 2016, में हम उनसे मिले और रोहतक जाने का निश्चय हुआ। इसका प्रमुख कारण यह था कि हम पहली बार स्वामी इन्द्रवेश जी कर्मस्थली देख सकेंगे और वहां आगन्तुक विद्वानों एवं ऋषि भक्तों के दर्शन कर सकेंगे। अतः हम शनिवार 11 जून को प्रातः रेलगाड़ी से दिल्ली पहुंचे और गुरुकुल गौतमनगर, देहरादून जाकर आर्यजगत के समर्पित विद्वान, ऋषि भक्त संन्यासी एवं देश के अनेक भागों में 9 गुरुकुलों के प्रणेता व संचालक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती से मिले। वहां पं. धर्मपाल शास्त्री जी हमसे कुछ समय पूर्व ही पहुंचे थे। हमने उनके दर्शन किये और वहां रात्रि निवास किया।
12 जून, 2016 को स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के कृपापूर्ण सहयोग से पंडित धर्मपाल शास्त्री सहित हम स्वामी जी के साथ रोहतक के टिटौली आश्रम के लिए निकले। पहले हम लाजपतनगर-2, दिल्ली की आर्यसमाज में गये। वहां स्वामी जी महाराज को दिल्ली की इस आर्यसमाज ने गुरुकुल के बच्चों के लिए अन्नदान के लिए धनराशि भेंट की। स्वामी जी ने इसके लिए आर्यसमाज के अधिकारीयों को धन्यवाद दिया। आर्यसमाज में संक्षिप्त अवधि की अपनी उपस्थिति में हमने देखा कि वहां बालक-बालिकाओं को योगासन कराये जा रहे थे। इसके बाद बच्चों ने कण्ठ कराये गये आर्यसमाज के नियम बोल कर सुनाये। आर्यसमाज के सत्संग की कार्यवाही के संचालक महोदय ने यह भी बताया कि उनकी आर्यसमाज 21 गुरुकुलों को अन्न की सहायता करती है। स्वामी जी को उन्होंने प्रवचन के लिए आमंत्रित किया। अपने प्रवचन में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती ने कहा कि इस आर्यसमाज द्वारा उन्हें गुरुकुल आरम्भ करने के पहले दिन से ही सहयोग प्रदान किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस आर्यसमाज का मातृ समाज व पुरुष समाज उन्हें सन् 1971 से यह सहयोग कर रहे हैं। इस वर्ष उन्हों अस्सी हजार रूपयों की सहायता स्वामी जी को प्रदान की। स्वामी जी ने कहा कि मैं माताओं व समाज का आभारी हूं। उन्होंने विश्वास दिलाया कि उनका चलाया जा रहा गुरुकुल आर्यसमाज की अपेक्षाओं को पूरा करने में सदैव तत्पर रहेगा। हमारा प्रयास है कि हम गुरुकुल में ब्रह्मचारियों को आर्यसमाज के प्रचारक विद्वान बनाएं। यह कार्य हम जारी रखेंगे। कायक्रम से निवृत्त होकर हम आर्यसमाज से चले और कुछ घंटों में रोहतक होते हुए स्वामी इन्द्रवेश विद्यापीठ, टिटोली पहुंच गये।
टिटोली पहुंच कर आश्रम का भव्य भवन व वहां चल रहे कार्यक्रम को देखकर हमें प्रसन्नता हुई। जब हम पहुंचे तो स्वामी आर्यवेश जी ऋषिभक्तों व युवा शिविरार्थियों को सम्बोधित कर रहे थे। स्वामी जी ने वहां पहुंचने पर स्वामी प्रणवानन्द जी व पं. धर्मपाल शास्त्री जी सहित हमारा भी परिचय दिया। इसके बाद वहां श्री दलबीर सिंह जी का सम्मान हुआ। उन्होंने अपने सम्बोधन में स्वामी इन्द्रवेश जी को उनकी दसवीं पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि दी व उनके सम्मान के लिए धन्यवाद किया। इसके बाद श्री श्योताज सिंह जी ने अपने सम्बोधन में स्वामी इन्द्रवेश जी को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि स्वामी इन्द्रवेश जी वेद व दर्शन शास्त्रों सहित वैदिक वांग्मय के उद्भट विद्वान थे। स्वामी आर्यवेश जी द्वारा उनके कार्यों को आगे बढ़ाये जाने का उल्लेख कर उन्होंने उनकी प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि स्वामी इन्द्रवेश जी ने स्वामी दयानन्द जी से प्रेरणा लेकर युवाशक्ति को संगठित करने का संकल्प लिया जिससे महर्षि दयानन्द के स्वप्नों के अनुरुप आर्य राष्ट्र का निर्माण किया जा सके। विद्वान वक्ता ने सामाजिक अपराधों व सामाजिक समस्याओं की चर्चा भी अपने सम्बोधन में की। आपने बताया कि हमारे देश में लगभग 21 हजार बच्चे प्रतिदिन भुखमरी से मरते हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा रोम में विश्व में भुखमरी समाप्त करने के विषय पर आयोजित सम्मेलन का उल्लेख कर आपने बताया कि स्वामी अग्निवेश जी वहां भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सम्मेलन का लक्ष्य है कि सन् 2030 तक संसार से भुखमरी समाप्त हो जाये। इस पर श्री श्योताज सिंह ने कहा कि स्वामी अग्निवेश जी सम्मेलन से तुरन्त ही भुखमरी समाप्त किये जाने पर बल देंगे। आपने स्वामी इन्द्रवेश जी की पुण्यतिथि के अवसर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर दानदाताओं से प्राप्त हुए दान की घोषणा भी सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान श्रद्धेय स्वामी आर्यवेश जी ने की। स्वामी आर्यवेश जी ने बताया कि आचार्य सन्तराम जी स्वामी इन्द्रवेश जी के निकट रहे हैं। आपने उन्हें सम्बोधन के लिए आमंत्रित किया गया।
श्री सन्तराम आर्य जी ने कहा कि हम अपने जीवित समर्पित विद्वानों व संन्यासियों को वह सम्मान नहीं देते जो उन्हें मिलना चाहिये। उन्होंने युवाओं व ऋषिभक्तों को प्रेरणा की कि आप अपने सम्पर्क में आने वाले आर्यसमाज के विद्वानों व संन्यासियों से प्रेरणा ग्रहण कर उनको यथोचित सम्मान दें और उनके कार्यों में सहयोग करें। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन में कर्म प्रधान है। हम जो भी कर्म करेंगे उसका कुछ न कुछ फल अवश्य होगा। उन्होंने स्वामी इन्द्रवेश जी की परम्पराओं को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। इस प्रवचन की समाप्ति के बाद स्वामी आर्य वेश जी ने इन्द्रवेश जी के शिष्य व सहयोगी श्री विरजानन्द जी को सम्बोधन के लिए आमंत्रित किया। आपने कहा कि स्वामी इन्द्रवेश जी का जीवन युवाओं के जीवन के निर्माण का रहा है। उन्होंने कहा कि हम एक निश्चित क्षेत्र चुनकर वहां युवाओं का निर्माण करें। स्वामी इन्द्रवेश जी ने ऐसा करने की हमें प्रेरणा की है। ऐसा करके स्वामी इन्द्रवेश जी विश्व को आर्य बनाना चाहते थे। विद्वान वक्ता ने कन्या भ्रूण हत्या की भी चर्चा की। इस सन्दर्भ में आपने अल्ट्रा साउण्ड मशीन की चर्चा की और इस पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि जिस उद्देश्य से इस मशीन की खोज की गई थी उसके विपरीत इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। आपने लिंग परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबन्ध की मांग की।
इसके बाद अगला प्रवचन आर्यजगत के सभी विद्वानों के आदरणीय और 9 गुरुकुलों के संचालक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी का हुआ। स्वामी प्रणवानन्द जी ने कहा कि हम सब मनुष्य परमात्मा की प्राप्ति के लिए संसार में आये हैं। उन्होंने उदाहरण देकर समझाते हुए कहा कि हम घर से निकलते हैं तो रास्ते में चैराहे पर लाल बत्ती पर हमें रूकना पड़ता है। इसके बाद बत्ती का रंग पीला होने पर हम सावधान हो जाते और हरी बत्ती होने पर दौड़ पड़ते हैं। स्वामी प्रणवानन्द जी ने कहा कि स्वामी इन्द्रवेश जी कहते थे कि उठो, जागो और अपने इष्ट परमात्मा की ओर बढ़ो। युवावस्था में अपने जीवन को तैयार करो और उसके बाद अन्य युवाओं को तैयार करो तो आप सफल हो जायेंगे। स्वामी जी ने कहा कि कुछ लोग उत्साह में कार्य आरम्भ तो कर देते हैं परन्तु विघ्न बाधायें आने पर विचलित हो जाते हैं। ऐसे लोगों को विपरीत परिस्थ्तियों में विचलित न होकर आर्यसमाज के विद्वानों की शरण लेनी चाहिये और उनकी सलाह लेकर उद्देश्य को सफल करने के लिए और अधिक तप करने का निर्णय करना चाहिये। स्वामी जी ने कहा कि स्वामी इन्द्रवेश जी के साथ मेरा लम्बी अवधि तक सान्निध्य रहा है। मैंने 6 वर्षों तक उनसे व्याकरण, साहित्य और दर्शन ग्रन्थ पढ़े हैं। स्वामीजी ने सभी लोगों को विद्या के क्षेत्र में अपनी योग्यता बढ़ाने को कहा। स्वामीजी ने ऋषि दयानन्द द्वारा पाखण्ड खण्डिनी पताका लगाये जाने की चर्चा की और कहा कि सफलता न मिलने पर स्वामी दयानन्द जी ने 15 दिन तक निराहार रहकर चिन्तन मनन किया था और फिर योजना बनाकर आगे कार्य किया। यही मार्ग स्वामी इन्द्रवेश जी का भी था कि विचार व चिन्तन कर निर्णय करना और उस पर आगे बढ़ना। आप सभी लोग भी स्वामी इन्द्रवेश जी के जीवन व कार्यों से प्रेरणा ग्रहण करें और जीवन में आगे बढ़े।
स्वामी रामवेश जी ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा कि उन्होंने 47 वर्षों तक स्वामी इन्द्रवेश जी के साथ काम किया है। उनके साथ गोरक्षा, नशाबन्दी और किसान आन्दोलन आदि कार्यों में जुड़ा रहा। उन्होंने युवक प्रशिक्षण शिविर की परम्परा को आरम्भ किया था। स्वामी इन्द्रवेश जी द्वारा आरम्भ की गई उसी परम्परा को आजकल स्वामी आर्यवेश जी आगे बढ़ा रहे हैं। स्वामी इन्द्रवेश जी ने किसानों के हितों के लिए भी सम्मेलन व आन्दोलन किए थे। बड़ी संख्या में लोगों ने स्वामी इन्द्रवेश जी के कार्यक्रमों में भागीदारी की थी। हरयाणा में पानी की समस्या के लिए भी स्वामी इन्द्रवेश जी लड़े। उनकी प्रेरणा से ही बाद में दूसरे दलों के लोगों व सरकार किसानों के हितों की बातें करने लगे और किसान यूनियन सहित किसानों के कई संगठन बनें। वह वस्तुतः भारत में किसान आन्दोलन के प्रणेता थे। उन्होंने संघर्ष कर हरयाणा में शराब बन्दी कराई थी। स्वामी इन्द्रवेश जी ने कन्या भ्रूण आन्दोलन भी चलाया था। उन्होंने कहा कि आर्य राष्ट्र ऐसा राष्ट्र होता है जिसमें कोई शराब न पिता हो, गोरक्षा व गोपूजा होती हो, गोहत्या को महापाप समझा जाता हो तथा जिस देश में नागरिकों का चरित्र उज्जवल हो। स्वामी रामवेश जी ने कहा कि स्वामी इन्द्रवेश जी योगी थे और कर्मशील थे। इसके बाद बहिन दयावती आर्या ने ‘जब तक जग में शुभ कर्मो का संचित सामान नहीं होगा’ गीत प्रस्तुत किया।
स्वामी आर्यवेश जी ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए मुख्य अतिथि श्री बलसज कूण्डू जी के सामाजिक कार्यों की चर्चा की। आपने हरयाणा में अपनी ओर से छः बसे केवल लड़कियों के स्कूल जाने के लिए चलवाईं हैं। उनके ऐसे अनेक कार्य प्ररेणादायक एवं अनुकरणीय हैं। हम उनका हृदय से स्वागत करते हैं। आपने कहा कि कि हरयाणा में लड़कियों की संख्या घटती जा रही है। यहां स्त्री व पुरुषों में स्त्रियों का लिंग अनुपात कम है। किन्हीं एक दो स्थानों पर अधिक भी है। उन्होंने कहा कि बेटी बचाओं के काम को यदि किसी एक संस्था ने महत्व दिया तो वह आर्यसमाज ही है। उन्होंने कहा कि बेटियों की महिमा सारा देश जानता है। जब भी हमारे विद्यालयों के परीक्षा परिणाम आते हैं तो हमारी लड़कियां लड़कों से आगे रहती है। आपने आईएएस परीक्षा परिणामों की चर्चा कर बताया कि वहां भी प्रथम स्थान पर एक पुत्री रही। मध्यकाल में हमारी बहिनों को पढ़ाई करने के अधिकार नहीं थे। महर्षि दयानन्द ने इस मध्यकालीन अज्ञानता से युक्त मान्यता का विरोध किया था। समाज के लोगों ने महर्षि दयानन्द जी का नाना प्रकार से विरोध व अपमान किया। स्वामी आर्यवेश जी ने महर्षि दयानन्द द्वारा स्त्री व शूद्रों की शिक्षा के समर्थन यजुर्वेद मन्त्र 26/2 ‘यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः। ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय।।’ का प्रमाण दिया जिसमें ईश्वर द्वारा कहा गया है उसकी वाणी वेदों को पढ़ने का अधिकार सभी मनुष्यों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रों व सभी स्त्रियों को भी है। स्वामी जी की इस चुनौती से सभी स्त्रियों व दलितों को वेदाध्ययन का अधिकार प्राप्त हुआ। स्वामी जी ने कहा कि हमने चालीसवां युवा निर्माण शिविर लगाया है। हमने अपने युवाओं के सभी व्यस्न छुड़ाने के प्रयास किये हैं। हमें सफलता मिल रही है। युवक-सुवतियों का चरित्र निर्माण करना हमारा उद्देश्य है। आपने खेलों व व्यायाम की भी चर्चा की और उपलब्ध्यिों पर प्रकाश डाला। स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि श्री बलराज कूण्डू जी ने नारी जाति के सशक्तिकरण में विशेष योगदान दिया है। स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि जब मैं आठवी कक्षा में पढ़ता था तब मैंने स्वामी इन्द्रवेश जी के दर्शन किये व उनके प्रवचनों को सुना था। उनके इन प्रवचनों ने मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ा जिसमें प्रेरणा थी कि तुम यह जीवन समाज के लिए लगाओ। स्वामी इन्द्रवेश जी की इस प्रेरणा से मैं उनकी ओर खींचता चला गया। मैंने स्वामी इन्द्रवेश जी से मार्गदर्शन देने के लिए निवेदन किया कि मैं वकालत करूं या अपना जीवन समाज के लिए लगाऊं? स्वामी जी ने मेरा मार्गदर्शन कर कहा कि देश के लिए अपनी जिन्दगी को लगा दो। यदि चरित्रवान रहकर ईमानदारी का जीवन जीते हुए अपना जीवन देश व समाज के लिए लगाओगे तो देश व समाज की बड़ी सेवा होगी। स्वामी आर्यवेश जी ने कहा देश के बहुत से नौजवानों ने स्वामी इन्द्रवेश जी से प्रेरणा ली थी।
इन प्रवचनों व सम्बोधनों के बाद सम्मान समारोह आरम्भ हुआ। प्रथम स्वामी यतीश्वरानन्द जी (विधायक), हरिद्वार-उत्तराखण्ड को स्वामी इन्द्रवेश स्मृति विरक्त सम्मान से सम्मानित किया गया। स्वामी जी को आर्यजगत के प्रमुख विद्वानों व संन्यासियों ने मिलकर उनके गले में मोतियों की माला डाली, उन्हें शाल ओढ़ाया, श्रीफल भेंट किया, स्मृति चिन्ह दिया और उनके सम्मान में अभिनन्दन पत्र पढ़ा गया। आपको पन्द्रह हजार रुपयों की धनराशि भी भेट की गई। अभिनन्दन पत्र को पढ़ने के साथ स्वामी आर्यवेश जी ने स्वामी यतीश्वरानन्द जी के जीवन व कार्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि स्वामी यतीश्वरानन्द हर मोर्चे पर कार्य करते हैं। भाजपा नेता वैंकैया नायडू हरिद्वार आकर दो महीनों तक उनके आश्रम में रहे। स्वामी जी उत्तराखण्ड सरकार द्वारा स्थापित गोसेवा आयोग के उपाध्यक्ष रहं हैंे। उनको सरकार द्वारा कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था। फिर आप विधायक बन गये। आप आर्यसमाज के तेजस्वी संन्यासी हैं। आपका जन्म हरयाणा के करनाल में हुआ है। आपका स्वभाव असत्य व पाखण्डों के विरुद्ध विद्रोही रहा है। आपने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की तथा वहां जुझारु छात्र नेता रहे। आपकी पहचान विद्यार्थी जीवन में एक संघर्षरत युवा नेता की रही। संन्यास से पूर्व आपका नाम जसवन्त सिंह था। स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती से संन्यास लेकर आप उनके शिष्य बने। आप स्वामी इन्द्रवेश जी के जीवन व कार्यों से भी प्रभावित रहे हैं। उनकी प्रेरणा से ही आपमें राजनीति के क्षेत्र में काम करने का संकल्प उत्पन्न हुआ। हरिद्वार को आपने अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बनाया। आपको गोसेवा व अन्य सामाजिक कार्यों के लिए कई बार जेल भी जाना पड़ा। आप वर्तमान में हरिद्वार (ग्रामीण) क्षेत्र से विधायक हैं। हम आशा करते हैं कि आप सदैव महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के लिए समर्पित रहेंगे। आज हम उन्हें स्वामी इन्द्रवेश की स्मृति में विरक्त सम्मान से सम्मानित कर रहे हैं।
स्वामी यतीश्वरानन्द जी के बाद आर्य विद्वान श्री धर्मपाल शास्त्री को स्वामी इन्द्रवेश स्मृति विद्वत सम्मान से अलंकृत किया गया। उनका विस्तृत परिचय स्वामी आर्यवेश जी ने दिया व अभिनन्दन पत्र का वाचन किया। आपको सभी विद्वानों व संन्यासियों ने मिलकर अभिनन्दन पत्र, मोतियों का हार, शाल, नारीयल व स्मृति चिन्ह सहित ग्यारह हजार रुपयों की धनराशि भेंट की। पं. धर्मपाल शास्त्री जी के बाद देहरादून के आर्यलेखक मनमोहन कुमार आर्य को भी स्वामी इन्द्रवेश स्मृति विद्वत सम्मान से सम्मानित किया गया। आपको भी पूर्व विद्वानों की तरह अभिनन्दन पत्र, स्मृति चिन्ह, मोतियों का हार, शाल, नारीयल सहित ग्यारह हजार रुपयों की धनराशि भेंट की गई। अभिनन्दन पत्र स्वामी आर्यवेश जी ने पढ़ा और उनक लेखकीय कार्यों से श्रोताओं को परिचित कराया। मनमोहनकुमार ने उन्हें प्रदत्त धनराशि आश्रम के कार्यों हेतु भेंट कर दी। स्वामी यतीश्वरानन्द जी व कुछ अन्य सम्मान प्राप्त करने वाले आर्यों ने भी ऐसा ही किया। इसके बाद सम्मान कार्यक्रम को जारी रखते हुए श्री हाकम सिंह आर्य (हरिद्वार), श्री शिवदत्त आर्य (जालौर) व ब्र. सहसरपाल आर्य (मुज्फ्फरनगर) को भी सम्मानित किया गया। कुछ बहिनों को भी सम्मानित किया गया जिनके नाम श्रीमति दयावती आर्या (रोहतक), श्रीमति कमला योगाचार्य (रोहतक), श्रीमति वीना आर्या (हापुड़) एवं सुनीता प्राचार्य (नरवाना) हैं। अन्य अनेक वरिष्ठ आर्य कार्यकर्ताओं को भी आयोजन में सम्मानित किया गया।
स्वामी यतीश्वरानन्द जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि स्वामी इन्द्रवेश जी का स्वप्न था कि भारत एक आर्य राष्ट्र बने। उन्होंने कहा कि बच्चों व युवाओं का चरित्र निर्माण, उन्हें योग व व्यायाम आदि का प्रशिक्षण व उनका सत्यार्थ प्रकाश आदि का अध्ययन ही आर्य राष्ट्र के निर्माण की प्रथम सीढ़ी है। स्वामी यतीश्वरानन्द जी ने कहा कि सरकारों द्वारा गोहत्या, नशाबन्दी व किसानों के हितों के जो कानून बनायें गयें हैं उसमें स्वामी इन्द्रवेश जी द्वारा किये गये संघर्षों का बहुत बड़ा योगदान है। आपने बताया कि स्वामी इन्द्रवेश जी ने अनेक समाजोत्थान के कार्यों के लिए संघर्ष किया था जिसका समाज पर व्यापक प्रभाव हुआ। आपके प्रयासों से हरयाणा में शराब बन्द हुई थी। बाद में सरकार द्वारा शराब बन्दी का निर्णय वापिस लिए जाने की आपने आलोचना की और कहा कि पूरे देश में शराब वा नशा बन्दी होना चाहिये। इस प्रवचन के बाद आर्यनेता श्री मायाप्रसाद त्यागी जी का भी अभिनन्दन किया गया। स्वामी आर्यवेश जी ने उनके सामाजिक योगदान के अनेक कार्यों से श्रोताओं को अवगत कराया।
स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि कि हमारी बहनें पूनम आर्या एवं प्रवेश आर्या जी उच्च शिक्षित हैं। इन्होंने नारी जाति के उत्थान का कार्य करने के लिए नौकरियों का प्रलोभन छोड़ा है और अब अपना पूरा समय नारी जाति के सुधार व उत्थान के कार्यों में कर रही हैं। स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि हमारे जो शिविर लगते हैं उसमें सभी वर्गों की लड़कियां होती हैं जो सभी एक साथ रहती हैं। सभी मिलकर भोजन करती हैं। इन बच्चों में जन्मना जातिवाद का कोई व किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे शिविर में आज एक दलित बहन व भाई जिस थाली में भोजन करता है तो कल उसी थाली में कोई अन्य जाति का व्यक्ति भोजन करता है। इससे भेदभाव समाप्त हो रहे हैं और ऐसे कार्यों को करने से ही जातिवाद का जहर समाज से समाप्त होगा। स्वामी आर्यवेश जी ने मुख्य अतिथि श्री बलराज कूण्डू जी से आश्रम की गतिविधियों के लिए आर्थिक सहयोग की अपील की। स्वामी जी ने कहा श्री कूण्डू हमारे मुख्य अतिथि ही नहीं हमारे परिवार के भी साथी हैं। उन्होंने मुख्य अतिथि को बहनों को सम्बल देने के लिए एक रथ के सहयेाग की अपील की जिससे वह नारी जाति के जीवन के उत्थान के काम को जोर शोर से कर सकें। इसके बाद श्री बलराज कूण्डू, मुख्य अतिथि के सम्मान में अभिनन्दन पत्र का वाचन स्वामी आर्यवेश जी ने किया और उन्हें अभिनन्दन पत्र भेंट कर उन्हें पगड़ी पहनाई गई, मोतियों का हार पहनाया गया, शाल, स्मृति चिन्ह व नारीयल किया गया।
आयोजन के मुख्य अतिथि बलराज कूण्डू, चेयरमैन जिला परिषद्, रोहतक ने अपने सम्बोधन में कहा कि मैंने लगभग 10 बार स्वामी इन्द्रवेश जी के दर्शन किये। मुझे हमेशा उनसे नई बातें सीखने को मिलती थी। स्वामी आर्यवेश जी, श्री दिक्षेन्द्र आर्य, बहिन पूनम आर्या व बहिन प्रवेश आर्या जी के कार्यों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि आपकी टीम बहुत अच्छा कार्य कर रही है। मुख्य अतिथि ने हरयाणा के रोहतक के गांवों से लड़कियों को स्कूल लाने व ले जाने के लिए 6 बसों का प्रबन्ध किया है। अभी वह दो और बसों का प्रबन्ध करने वाले हैं। इन बसों में केवल लड़कियां ही स्कूल जा सकती हैं। इन कार्यों की प्रेरणा के कारणों पर भी आपने प्रकाश डाला और कहा कि इससे बहिनों की सुरक्षा में वृद्धि होगी, जो बहिनें सुरक्षा कारणों से स्कूल नहीं जा पाती थी, वह अब स्कूल जा रही हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि आने वाले समय में यह सभी बहिनें सरकारी उच्च पदों सहित समाज के महत्वपूर्ण कार्यों में नियुक्त होगीं। मुख्य अतिथि महोदय ने यह भी कहा कि इस आयोजन की देश व प्रदेश को जरूरत है। हमारे आज के युवा भटक रहे हैं। युवकों का मार्ग दर्शन करने के लिए वैदिक धर्म व संस्कृति के प्रचार की आवश्यकता है। आपने बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं की भी चर्चा की और कहा कि हमारे राजनीतिक नेताओं में नारी जाति की शिक्षा व उसमें समुचित सुधार की क्षमता नहीं है। आज स्थिति यह आ गई है कि लोग लड़की पैदा करने में डरते हैं। उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि बेटियां हमारी आन, बान और शान होती हैं। आज के सामाजिक वातावरण के कारण ही लोग बेटी के माता-पिता होने से डरते हैं। माता-पिता इस भय के कारण ही कम आयु में ही लड़कियों का विवाह भी कर देते हैं। उन्होंने कहा कि बेटियों को सुरक्षा देने से सामाजिक सोच में बदलाव आयेगा। आपने स्वामी इन्द्रवेश विद्यापीठ के लिए एक लाख रूपये दान देने की घोषणा करने के साथ उनकी अन्य सभी योजनाओं में सहयोग करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि यदि आश्रम के लोग सहमत होंगे तो वह समस्त खाली स्थान में टाइलों का फर्श बनवा देंगे। श्री बलराज कूण्डू के सद्गुणों व कार्यों की वहां उपस्थित सभी विद्वानों व सन्यासियों ने प्रशंसा की और उन्हें आशीर्वाद दिया। इसके बाद कुछ भजन व कुछ संक्षिप्त सम्बोधन हुए और कार्यक्रम सोल्लास व सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। आयोजन में सभी लोगों के भोजन की सुन्दर व्यवस्था थी। दूर दूर से बड़ी संख्या में लोग इस आयोजन में सम्मिलित हुए।
आयोजन में आर्य उपप्रतिनिधी सभा, हरिद्वार के प्रधान श्री हाकम सिंह आर्य अपने कुछ आर्य सहयोगी मित्रों सहित सम्मान ग्रहण करने व आयोजन में भाग लेने हेतु पधारे हुए थे।रूड़की तक साथ चलने का उनसे हमें प्रस्ताव मिला। अतः आश्रम से सायं लगभग 5 बजे उनके साथ चलकर हम रात्रि 1 बजे देहरादून अपने निवास पर पहुंच गये।
–मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, हम जो भी कर्म करेंगे उसका कुछ न कुछ फल अवश्य होगा तथा रैड लाइट सिग्नल-युवा बहुत अच्छे लगे. अति सुंदर आलेख के लिए आभार.
प्रिय मनमोहन भाई जी, हम जो भी कर्म करेंगे उसका कुछ न कुछ फल अवश्य होगा तथा रैड लाइट सिग्नल-युवा बहुत अच्छे लगे. अति सुंदर आलेख के लिए आभार.
नमस्ते आदरणीय बहिन जी। प्रतिक्रिया अच्छी लगी। हार्दिक धन्यवाद। सादर।